जगत के नाथ जय-जय जगन्नाथ, जगन्नाथ पुरी धामऔर जगन्नाथ पुरी दर्शन यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी

 

Tourist Places in Puri in Hindi

Key Highlights

Puri Tourist Places in Hindi

जगन्नाथ पुरी में घूमने की जगह

 

 

Puri Tourist Places Information

चार धामों में एक जगन्नाथ धाम उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में समुद्र तट पर स्थित है। भगवान कृष्ण को समर्पित जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा के साथ विराजते है। शंख के आकर का होने के कारण जगन्नाथ पुरी को शंख क्षेत्र और पुरुषोत्तमपुरी भी कहा जाता है। जगन्नाथ पुरी में विश्व की सबसे बड़ी रसोई है। जिसमे प्रतिदिन 25000 और रथ यात्रा उत्सव के दिनों में एक लाख लोगों के लिए भोजन बनता है। पुरी अपनी पारंपरिक कला, संस्कृति, इतिहास, वास्तुकला, समुद्री शिल्प के अलावा मंदिरों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। पुरी में प्रति वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भव्‍य रथयात्रा निकली जाती है। जिसमे भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा को प्रतिमाओं को लकड़ी के बने रथ में बिठाकर नगर का भ्रमण करवाया जाता हैं।

 

जगन्नाथ मंदिर के आश्चर्य और रहस्य

आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को आप पुरी के किसी भी स्थान से देखेंगे, तो वो आपको हमेशा  अपने सामने ही लगा दिखेगा।

मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखने पर ही आपको समुद्र की लहरों से आने वाली आवाज सुनाई नहीं देती। आश्चर्य की बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखते है, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देने लगती है। यह अनुभव शाम के समय और भी अद्भुद प्रतीत होता है।

जगन्नाथ मंदिर के शिख़र पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है।

आपने हर मंदिरों के शिख़र पर पक्षी को बैठे और उड़ते देखा होगा, परन्तु जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुज़रता। यहां तक कि हवाई जहाज़ भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता। ये बात दुनिया के लिए आज भी रहस्य बनी हुई है।

पुरी मंदिर का डिज़ाइन भी काफ़ी रहस्मयी है, क्योंकि दिन के किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिख़र की परछाई नहीं बनती है।

मंदिर में प्रसाद बनाने के लिए मिटटी सात बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। इस प्रसाद को लकड़ी जलाकर पकाया जाता है, इस प्रक्रिया में मुख्य बात यह है कि सबसे ऊपर के बर्तन का प्रसाद पहले पकता है और नीचे के बर्तन का प्रसाद अंत में पकता है।

मंदिर में प्रतिदिन लगभग हर रोज़ कुछ 2 हज़ार लोगों से लेकर 20 हज़ार लोग दर्शन के लिए आते हैं और भोजन भी करते हैं, फिर भी अन्न की कमी नहीं पड़ती है और मंदिर के पट बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है। हर समय पूरे वर्ष के लिए भंडार भरपूर रहता है।

आमतौर पर दिन में चलने वाली हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती और शाम को धरती से समुद्र की तरफ चलती है पर आश्चर्य की बात यह है कि पुरी में यह प्रक्रिया उल्टी है।

मंदिर के पुजारी द्वारा 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडा प्रतिदिन बदला जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा।

 

भुवनेश्वर से जगन्नाथ पुरी कैसे जाये?

जगन्नाथ पुरी, उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से 60 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। भुवनेश्वर पूरे भारत से वायुमार्ग, रेल मार्ग और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। भुवनेश्वर आने के बाद जगन्नाथ पुरी जाना अत्यंत सरल है।

फ्लाइट से जगन्नाथ पुरी कैसे पहुचे?

जगन्नाथ पुरी से 60 किमी की दूरी पर भुवनेश्वर में बीजू पटनायक एयरपोर्ट है। भारत के सभी राज्यों से भुवनेश्वर एयरपोर्ट के लिए गवर्नमेंट और प्राइवेट एयरलाइंस की कई फ्लाइट्स चलती हैं। आप भुवनेश्वर एयरपोर्ट से बस, टैक्सी या कैब के माध्यम से 1 घंटे में जगन्नाथ पुरी पहुँच सकते है।

जगन्नाथ पुरी कैसे पहुचे रेलमार्ग से?

पुरी रेलवे स्टेशन के लिए भारत के सभी प्रमुख शहरों से पैसेंजर और सुपर फ़ास्ट ट्रेने चलती है। अगर आपके शहर से पुरी के लिए डायरेक्ट ट्रेन नही है तो आप पुरी के निकटतम भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन आकर आसानी से पुरी जा सकते है।

सड़क मार्ग से जगन्नाथ पुरी कैसे पहुचे?

उड़ीसा राज्य नेशनल हाइवे नंबर 5, 6, 23, 42 और 43 रेल मार्ग से पूरे देश से जुड़ा हुआ है। भारत का प्रमुख धार्मिक स्थल होने के कारण पुरी के लिए देश के सभी मुख्य शहरों और पर्यटन स्थलों से AC और नॉन AC बस सेवा उपलब्ध रहती है। ओडिशा टूरिज्म भी कई नार्मल और लग्जरी बसें भी चलाता है। भुवनेश्वर से कटक और कोणार्क जाने के लिए हर 15 मिनिट में बस उपलब्ध है। पुरी की सड़क मार्ग से यात्रा करने पर रास्ते में प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद प्राप्त किया सकता है।

 

जगन्नाथ पुरी यात्रा करने का सही समय

बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित जगन्नाथ पुरी के मौसम को समुद्र बहुत प्रभावित करता है। मानसून में समय यहाँ भारी बारिश होती है। गर्मियों में बेहद गर्मी पड़ती है इसलिए अक्टूबर से मार्च तक जगन्नाथ पूरी जाने का सबसे अच्छा समय है। इसके अलावा विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा का समय भी पुरी जाने के लिए उपयुक्त है।

 

जगन्नाथ पुरी में कहां ठहरें?

जगन्नाथ पुरी के मंदिर के आस पास, समुद्र के किनारे, बीच के पास और न्यू मरीन ड्राइव रोड पर भी कई होटल है। मंदिर प्रशासन के भक्त निवास नीलाचल भक्त निवास और श्री गुंडिचा भक्त निवास में 700 से 1200 तक AC और NON AC  रूम मिल सकते है। इन दोनों भक्त निवास में रूम ऑनलाइन बुक करने के लिए मंदिर प्रशासन की वेबसाइट www.jagannath.nic.in पर जा सकते है।

जगन्नाथ पुरी में रुकने के लिए कई मठ एवं धर्मशालाएं भी उपलब्ध हैं, जहाँ श्रद्धालु के ठहरने एवं भोजन आदि की समुचित व्यवस्था है। यहां की मुख्य धर्मशालाओं में दुधवइ वालंकी धर्मशाला, बीकानेर वालंकी धर्मशाला , गोयनका धर्मशाला, सेठ धनजी मूलजी धर्मशाला, सेठ कन्हैया लाल बागला धर्मशाला, श्री आशाराम जी व मोतीराम जी की धर्मशाला प्रमुख हैं।

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वास्तुकला जगन्नाथ मंदिर की

जगन्नाथ मंदिर 214 फुट ऊँचा ,20 फुट ऊँची दीवारों से घिरा और चार लाख वर्ग फुट क्षेत्र में फैला है यह मंदिर कलिंग शैली में बना है। इस मंदिर के शिखर पर बना सुदर्शन चक्र (नील चक्र) अष्ट धातुओं से बनाया गया है।

मंदिर के चारों दिशाओं में चार द्वार बने हुए है।

1) पूर्व दिशा में सिंह द्वार है। जहां से आम लोग को प्रवेश दिया जाता है।

2) दक्षिण दिशा में अश्व द्वार है। इस द्वार से VIP लोग प्रवेश करते हैं।

3) पश्चिम दिशा में हाथी द्वार है। इस द्वार से पुजारी पंडित प्रवेश करते हैं।

4) उत्तर दिशा में व्याघ्र द्वार है। इस द्वार से विकलांग , बीमार व्यक्ति प्रवेश करते हैं।

 

जगन्नाथ पुरी की पौराणिक कथा और अधूरी मूर्तियों का रहस्य

स्थानीय मान्यता है कि कई वर्ष पूर्व में स्वयं नीलांचल पर्वत पर भगवान नीलमाधव (जगन्नाथ) निवास करते थे। एक दिन राजा इंद्रद्युम्न को रात में भगवान विष्णु ने उनको सपने में दर्शन देकर कहा कि नीलांचल पर्वत की एक गुफा के अन्दर मेरी एक प्रतिमा है, जिसे नीलमाधव कहते हैं। ‍प्रभु बोले तुम एक मंदिर बनवाओ और उसमें मेरी यह मूर्ति स्थापित कर दो। नीलांचल पर्वत पर सबर कबीला था, जिसका मुखिया विश्‍ववसु भगवान नीलमाधव का उपासक था और उसने मूर्ति को गुफा में छुपा कर रखा था। वह गुफा में उसकी पूजा करता था। राजा इंद्रद्युम्न ने अपने सेवक ब्राह्मण विद्यापति को मूर्ति लाने का कार्य सौपा।

विद्यापति ने मुखिया विश्‍ववसु की पुत्री से विवाह कर लिया। कुछ दिनों के बाद विद्यापति ने अपने ससुर विश्ववसु से भगवान नील माधव के दर्शन करने की इच्छा व्यक्त की पहले तो विश्ववसु ने मना कर दिया परन्तु बाद में बेटी की जिद के कारण हाँ कर दी। विश्ववसु, विद्यापति की आँख पर पट्टी बाँध कर भगवान नील माधव के दर्शन करवानें ले गया। विद्यापति ने चतुराई करके जाते समय रास्ते में सरसों के दाने गिराते गया और बाद में सरसों के दानो के जरिये गुफा से मूर्ति चुराकर राजा को दे दी। विश्‍ववसु भगवान नील माधव की मूर्ति चोरी होने से बहुत दुखी हुआ। अपने भक्त के दुख को देखकर भगवान भी दुखी हो गए और उसी  गुफा में वापस लौट गए। जाते समय उन्होंने राजा इंद्रद्युम्न से वादा किया कि वो उनका एक विशाल मंदिर बनवा देगा तो वे उनके पास जरूर लौट आयेंगे।

राजा इंद्रद्युम्न ने एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया और भगवान विष्णु से मंदिर में विराजमान होने के लिए प्रार्थना की। भगवान ने कहा कि द्वारका से एक लट्ठे के जैसा बड़ा टुकड़ा समुद्र में तैरकर पुरी तक आ गया है, उससे तुम मेरी मूर्ति बनवाओ। राजा के सेवकों ने टुकड़े को तो ढूंढ लिया पर वे सब  मिलकर उसे उठा नहीं पाए। तब राजा ने सबर कबीले के मुखिया नीलमाधव के अनन्य भक्त विश्‍ववसु को उस भारी टुकड़े को लाने के लिए प्रार्थना की। सबको बहुत आश्चर्य हुआ जब विश्ववसु भारी-भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले आए।

राजा इंद्रद्युम्न में उस लकड़ी के टुकड़े की प्रतिमा बनाने के लिए कई कुशल कारीगर लगाये, पर उन कारीगरों में से कोई भी लकड़ी में एक छैनी तक भी नहीं लगा सका। तब सृजन का देवता भगवान विश्‍वकर्मा एक बुजुर्ग व्यक्ति का रूप धरकर आए। उन्होंने राजा से भगवान नीलमाधव की मूर्ति बनाने की इच्छा व्यक्त की और अपनी शर्त भी रखी कि वे 21 दिन में मूर्ति को एकांत में बनाएंगे, उन्हें कोई मूर्ति बनाते हुए नहीं देख सकता। राजा ने उनकी शर्त सहर्ष स्वीकार कर ली। अब लोगों को कमरे के  अंदर से आरी, छैनी, हथौड़ी की आवाजें सुनाई आ रही थी। इसी बीच रानी गुंडिचा जो राजा इंद्रदयुम्न की रानी थी, वे दरवाजे के पास गई पर उन्हें कोई आवाज सुनाई नहीं दी। उन्हें लगा कि वह बूढ़ा कारीगर मर गया है। उन्होंने घबरा कर राजा को इसकी सूचना भिजवाई कि अंदर से किसी प्रकार की कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही है। राजा इंद्रद्युम्न भी चिंतित हो गए उन्होंने सभी शर्तों और चेतावनियों को दरकिनार करते हुए कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दिया। जैसे ही कमरा खोला गया तो बूढ़ा व्यक्ति कही दिखाई नही दिया और कमरे में 3 अधूरी ‍मूर्तियां प्राप्त हुई। भगवान नीलमाधव (जगन्नाथ) और उनके भाई के छोटे-छोटे हाथ बने थे, लेकिन उनकी टांगें नहीं बनी थी और सुभद्रा जी के तो हाथ-पांव ही नहीं बने थे। भगवान जगन्नाथ ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वे अब से काष्ठ की मूर्ति में ही प्रकट होकर भक्तों दर्शन दिया करेंगे। राजा इंद्रद्युम्न ने इसे भगवान जगन्नाथ की इच्छा मानकर इन अपूर्ण प्रतिमाओं को मंदिर में स्थापित कर दिया। इस प्रकार उस समय से आज तक भगवान जगन्नाथ और उनके भाई बहन इसी रूप में भक्तों को दर्शन दे रहे हैं।

पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के नश्वर शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया। सारा शरीर राख मे बदल गया पर भगवान श्री कृष्ण का दिल जलता ही रहा, तब उनके जलते हुए दिल रूपी पिंड को समुद्र में प्रवाहित कर दिया गया। समय बीतने के साथ साथ और उस पिंड ने एक लट्ठे का रूप ले लिया। उस समय भगवान जगन्नाथ पुरी के राजा इन्द्रद्युम्न को भगवान ने इस दिल रुपी लट्ठे की मूर्ति बनाने का आदेश दिया। प्राचीन समय का यही पिंड भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर स्थापित है। इस पिंड को आज तक किसी ने नहीं देखा है। 12 या 19 वर्षों में जब नवकलेवर का अवसर आता है, तब मूर्तियों को बदलते समय पुजरियों की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ पर कपड़ा ढक दिया जाता है, इसलिए वे आज तक ना तो उस लट्ठे को देख पाए हैं और ही छूकर महसूस कर पाए हैं। बस इतना अहसास होता है कि लट्ठा बहुत नर्म होता है।

 

भगवान जगन्नाथ मंदिर के दर्शन और रहस्यों का अवलोकन

जगन्नाथ मंदिर सुबह 5.30 AM से 12.00 PM तक खुला रहता है। अब हम जगन्नाथ भगवान के दर्शन करेंगे और उनके मंदिर के रहस्यों को भी देखते जायेंगे। पहले रहस्य के अनुसार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के जाते समय आप मंदिर शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखिये। इस चक्र को आप पुरी के किसी भी स्थान से देखेंगे, तो वो आपको हमेशा अपने सामने ही लगा दिखेगा। मंदिर पहुचकर जूते, चप्पल, मोबाइल और चमड़े के सामान जमा करके टोकन ले लीजिये। मंदिर के सामने एक स्तम्भ बना है, आपको इसके दर्शन करना है। अब आप सिंह द्वार से अन्दर प्रवेश कीजिये और मंदिर का दूसरा रहस्य महसूस कीजिये। जैसे ही सिंह द्वार से एक कदम अन्दर रखेंगे, समुद्र की लहरों की आवाज बंद हो जाएगी और जैसे ही कदम बहार रखेंगे, तो आवाज आने लगेगी। मंदिर के अंदर प्रवेश करने पर पुजारी जिन्हें यहाँ पंडा कहा जाता है, वे आपके पीछे पड़ जायेंगे और आपको लूटने की कोशिश करेंगे। आप पुजारियों की बातों का जवाब न दे, उनसे बहुत सावधान रहें।

मंदिर में 22 सीढियाँ चढ़ने पर पहले विश्वनाथ मंदिर आयेगा। विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने के बाद, जगन्नाथ भगवान के दर्शन करने पर ही हमे दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है, इसलिए पहले विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करेंगे। विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करने के बाद आप सीधे भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने के लिए लाइन में लग जाइये। यहाँ बहुत ज्यादा धक्कामुक्की होती है इसलिए अपने बच्चों का ध्यान रखें और अपने गुस्से पर नियंत्रण रखे। भगवान जगन्नाथ का मन में ध्यान करते रहे। भीड़भाड़ सहते-सहते आप गर्भ द्वार तक पहुच जायंगे। अब आपको भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के दर्शन होंगे। भगवान कृष्ण के प्रतीक, जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा दायीं तरफ स्थित है, मध्य में उनकी बहन सुभद्रा की प्रतिमा है, बाई तरफ बड़े भाई बलभद्र की प्रतिमा है। तीनों मूर्तियों के चरण नहीं है। अपने मन से सभी विचारों को निकाल दीजिये। एकाग्रचित्त होकर भगवान जगन्नाथ को ध्यानपूर्वक निहारते रहें। भगवान की अद्भुद छबि को अपने मन में धारण कर लीजिये। श्रद्धापूर्वक भगवान को प्रणाम करके धीरे धीरे बहार आ जाइये।

जगन्नाथ मंदिर के परिसर के अन्दर विमला देवी मंदिर, साक्षी गोपाल मंदिर, गोपीनाथ मंदिर, लक्ष्मी मंदिर, बट गणेश मंदिर व अन्य मंदिर है, अपनी श्रद्धा के अनुसार इस सभी मंदिरों के दर्शन कर लीजिये। मंदिर का तीसरा रहस्य देखिये कि जगन्नाथ मंदिर के शिख़र पर स्थित झंडा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है। मंदिर के चौथे रहस्य का अवलोकन करें कि जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुज़रता। यहां तक कि हवाई जहाज़ भी मंदिर के ऊपर से नहीं निकलता। मंदिर का पांचवा रहस्य देखिये कि दिन के किसी भी समय जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिख़र की परछाई नहीं बनती है।

 

जगन्नाथ महाप्रभु की रसोई

जगन्नाथ महाप्रभु मंदिर के दक्षिण-पूर्व दिशा में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। इस रसोई को देखने के लिए 10 रूपये का टिकट लगता है। इस रसोई में लगभग 500 रसोइए तथा उनके 300 सहयोगी भगवान को चढ़ाने वाले 56 भोग को तैयार करने के लिए काम करते हैं। यहाँ की मान्यता के अनुसार इस रसोई में बनने वाला भगवान के 56 भोग का निर्माण माता लक्ष्मी की देखरेख में ही होता है। यह भोग हिंदू धर्म पुस्तकों के दिशा-निर्देशों के अनुसार बिना प्याज और लहसुन से तैयार किया जाता है। भोग निर्माण के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग किया जाता है। रसोई के पास स्थित गंगा व यमुना नाम के कुओं के जल से ही इन 56 भोग का निर्माण किया जाता है। मंदिर का छटवा रहस्य देखिये कि मंदिर में प्रसाद बनाने के लिए मिटटी सात बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं। इस प्रसाद को लकड़ी जलाकर पकाया जाता है, इस प्रक्रिया में मुख्य बात यह है कि सबसे ऊपर के बर्तन का प्रसाद पहले पकता है और नीचे के बर्तन का प्रसाद अंत में पकता है। भगवान जगन्नाथ को भोग चढ़ने के बाद, यह भोग महाप्रसाद बन जाता है। मंदिर के प्रवेश द्वार के पास आनंद बाजार है, इसमें महाभोग का प्रसाद बहुत कम दाम में मिलता है। मंदिर के सातवे रहस्य के अनुसार हजारों या लाखों लोग आ जाये, यहाँ प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता। अब मंदिर के नौवे रहस्य का अवलोकन करें कि आमतौर पर दिन में चलने वाली हवा समुद्र से धरती की तरफ चलती और शाम को धरती से समुद्र की तरफ चलती है पर आश्चर्य की बात यह है कि पुरी में यह प्रक्रिया पूर्णत: उल्टी है।

 

जगन्नाथ मंदिर की आरती और अनुष्ठान की समय सारणी

1. मंगल आरती – जब मंदिर सुबह 5:00 बजे खुलता है। तब मंगल आरती की जाती है।
2. बेशालगी –भगवान के कई बार कपड़े बदले जाते है। उन्हें प्रातः 8:00 बजे उत्सव के अवसरों के अनुसार सुनहरी और सुंदर वस्त्रों से सुसज्जित किया जाता हैं। इसे ‘भितर कथा’ के नाम से भी जाना जाता है।
3. सकला धूप – सुबह 10:00 बजे उपासरों के साथ सुबह की पूजा की जाती है। बड़ी मात्रा में 56 भोग तैयार करके भगवान को चढ़ाया जाता है।
4. मेलम और भोग मंडप – सुबह की पूजा के बाद भगवान के कपड़े फिर से बदल दिए जाते हैं, जिसे मेलम कहा जाता है। इसके बाद भोग मंडप में पूजा होती है और इस भोग को जो महाप्रसाद बन जाता है, उसे भक्तों को दिया जाता है।
5. मध्याह्न धूप – साकल धूप की तरह, यह पूजा सुबह 11:00 से दोपहर 12:00 बजे के मध्य की जाती है।
6. संध्या धूप – शाम 7:00 बजे से रात 8:00 बजे के मध्य फिर से पूजा की जाती है और भोग लगाया  जाता है।
7. मेलम और चंदना लग – शाम की पूजा के बाद भगवान का चंदन के लेप से अभिषेक किया जाता है। 10 रूपये के नाममात्र शुल्क का भुगतान करने के बाद इस अनुष्ठान को देखा जा सकता है।
8. बद्रीश्रंग भोग- यह दिन का अंतिम भोग है। इसके साथ ही भगवान की पूजा जाती है।

 

पुरी बीच

बंगाल के समुद्र तट का खूबसूरत नज़ारा और दूर दूर तक फैला सौंदर्य वास्तव में दिलकश नजारा पेश करता है। लम्बे समुद्री तट पर बिखरी सुनहरी रेत, सुहानी हवा, जगमगाता साफ पानी पुरी आने वाले हर पर्यटक को अपनी तरफ आकर्षित करता है। इस बीच को स्नान और तैरने के लिए भारत के सर्वश्रेष्ठ समुद्री तटों में से एक माना गया है। सागर के  किनारे पर विभिन्न कलाकारो द्वारा बनाई गई रेत की मूर्तियां दातों तले उँगलियाँ दबाने पर मजबूर कर देती है। इस पुरी के अनूठे बीच पर सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का अद्भुत द्रश्य देखकर आप मंत्रमुग्ध हो जायेंगे। सूर्योदय के समय झिलमिलाती सूर्य की किरणें समुद्र में इंद्रधनुषी छटा बिखेर रही होती है और सूर्यास्त का लुभावना द्रश्य आपकी सारी थकन मिटा देता है।

 

पुरी के दर्शनीय स्थल

पुरी शहर के मंदिरों और अन्य जगहों को घूमने के लिए आपको साइकिल-रिक्शा या ऑटो-रिक्शा लेना होगा। घूमने के लिए साइकिल रिक्शा सबसे सस्ता विकल्प माना जाता हैं। ये बहुत गरीब होते है, इनसे मोल भाव करने की कोशिश न करें। इसके विपरीत ऑटो रिक्शा चालक का मीटर आमतौर पर ख़राब और गड़बड़ रहता हैं, इसलिये आपको ऑटो चालक से मोलभाव करना आवश्यक है। आटो से लगभग 300-400 रूपये का खर्च आता है।

 

नरेंद्र सरोवर, पुरी

नरेन्द्र तालाब पुरी में श्रीमंदिर से 1 किमी. दूरी पर स्थित है। इस तालाब के मध्य एक सुन्दर मंदिर स्थित है। इस तालाब में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान हर साल चंदन यात्रा के दिन भगवान के प्रतिनिधि मदन मोहन, भू देवी एवं श्रीदेवी तथा पालकी में रामकृष्ण विराजमान होकर स्थित नरेन्द्र सरोवर अर्थात चंदन तालाब आते है और नौका विहार करते है।

 

गुंडिचा मंदिर, पुरी

गुंडीचा मंदिर जगन्नाथ मंदिर से 2.5 कि.मी दूर ग्रांड रोड के दूसरे सिरे पर स्थित है। कलिंग शैली में बना यह मंदिर भगवान जगन्नाथ की मौसी गुंडिचा को समर्पित है। यह मंदिर एक सुंदर बगीचे के बीच में बनाया गया है। प्रति वर्ष होने वाली रथ यात्रा के समय भगवान जगन्नाथ यहाँ 9 दिन ठहरते है। भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर को उनकी मौसी पादोपीठा खिलाकर उनका स्वागत करती हैं।

 

बेड़ी हनुमान मंदिर, पुरी

बेड़ी हनुमान मंदिर पुरी के चक्र नारायण मंदिर की पश्चिम दिशा की ओर समुद्र तट के निकट स्थित एक छोटा सा मंदिर है। इसे दरिया महावीर मंदिर भी जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ ने हनुमान जी को समुद्र से मंदिर की रक्षा करने के लिए नियुक्त किया था। हनुमान जी भगवान जगन्नाथ, बलराम जी  और सुभद्रा जी के दर्शन के लिए बार बार नगर में चले जाते थे। उनके जाने के बाद समुद्र नगर में प्रवेश कर जाता था। इस प्रकार समुद्र ने 3 बार मंदिर तोड़ दिया, तब भगवान जगन्नाथ ने हनुमान को जंजीरों से बांध दिया। इस मंदिर में हनुमान जी की जंजीरों से बंधी प्रतिमा स्थापित है।

 

सोनार गौरांगा मंदिर, पुरी

सोनार गौरांगा मंदिर पुरी शहर के उत्तरी छोर और भगवान जगन्नाथ मंदिर से 3 किलोमीटर की दूरी पर चक्रतीर्थ मार्ग के बाईं ओर स्थित है। यह मंदिर भगवान गौरांग को समर्पित है। इस मंदिर में श्री राम, भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा के मंदिर हैं। इस मंदिर का वातावरण शांत है।

 

चक्र तीर्थ मंदिर, पुरी

चक्र तीर्थ मंदिर जगन्नाथ मंदिर से 3 किमी दूर पुरी की उत्तरी दिशा में स्थित है। इस चक्र मंदिर को नारायण मंदिर, चक्र नरसिंह मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। कुछ समय पहले जब पुरी में एक प्रचंड चक्रवात आया था, जिससे जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थित नीलाचक्र आसमान में उड़ गया और चक्रतीर्थ पर गिरा। यह चक्र काले ग्रेनाईट को काट कर बनाया गया था। इस मंदिर में स्थित भगवान नारायण की मूर्ति के साथ, गर्भगृह में स्थित चक्र को भगवान विष्णु / जगन्नाथ के शस्त्र के रूप में पूजा जाता है, इसे चरणनारायण के रूप में जाना जाता है। जिस लकड़ी के प्रयोग से जगन्नाथ मंदिर में देवताओं की मूर्तियों का निर्माण किया जाता है, उसे दारू कहा जाता है। वह ‘दारु’ समुद्र के माध्यम पहली बार पुरी आया और इसने चक्रतीर्थ की भूमि को छुआ था।

 

जगन्नाथ जी की ससुराल, पुरी

बेडी हनुमान जी और सोनारगोरांगी मंदिर के निकट जगन्नाथ जी की ससुराल स्थित है। इस मंदिर को देखने के लिये भी तीन रूपये का टिकट लगता है। इस मंदिर में अलग-अलग जगहों पर लिखा है कि इस मंदिर जीर्णोद्धार दान द्वारा हुआ हैं। भगवान जगन्नाथ नौ दिनों के लिए अपने भाई और बहन के साथ रथों पर विराजमान होकर लक्ष्मी जी को बिना बताए ससुराल आते है और देवी लक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ जी से रूष्ट होकर अपने पीहर रसिक शिरोमणि मंदिर चली जाती है, फिर गुस्से में भगवान जगन्नाथ जी का रथ तोड़कर वापस अपने ससुराल भगवान जगन्नाथ जी मंदिर को लौट आती है। यहाँ यह घटना प्रति वर्ष उत्सव के रूप में मनाई जाती है।

 

लोकनाथ मंदिर, पुरी

लोकनाथ मंदिर पुरी का दूसरा सबसे लोकप्रिय मंदिर है, जो जगन्नाथ मंदिर से सिर्फ 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव लोकनाथ रूप में स्थित है। स्थानीय लोगों के अनुसार मंदिर के इस लिंगा को भगवान रामचंद्र द्वारा स्थापित किया गया है। भगवान शिव ने शनिदेव की कुद्रष्टि से बचने के लिए, यहाँ के तालाब के अंदर कुछ समय तक निवास किया था। पार्वती टंकी के पास एक प्राकृतिक झरना बहता है, जिससे छोटे चतुर्भुज आकार के स्थान के मध्य में स्थित शिवलिंग में सदैव पानी रहता है। शिवरात्रि से एक रात पहले यहाँ सारा पानी बाहर निकाल दिया जाता है, ताकि शिवरात्रि को भक्त इस शिव लिंग की पूजा कर सकें। यहाँ आकर कई लोग भगवान लोकनाथ की दिव्य कृपा से विभिन्न घातक रोगों से ठीक हुए हैं।

 

माता मठ, पुरी

माता मठ जगन्नाथ पुरी के दर्शनीय स्थलों में से एक है। एक सुन्दर गार्डन स्थित यह मंदिर लगभग 150 पुराना है। यहाँ का ठंडा वातावरण, खूबसूरत सजावट और कई देवताओं की विशाल मनमोहक प्रतिमाएं देखकर आप मंत्रमुग्ध हो जायेंगे। यहाँ सरोवर में हंस तैरते रहते है और हरे भरे वृक्षों और झाड़ियों के बीच मनमोहक द्रश्य बनाये गये है। यहाँ अलग अलग झाकियों का आनंद लेते हुए घूमना एक सुखद अनुभव देता है।

 

श्री श्री टोता गोपीनाथ मंदिर, पुरी

पुरी के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक टोता गोपीनाथ मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण की अति सुंदर प्रतिमा हैं। टोता गोपीनाथ सबसे अद्भुद प्रतिमा इसलिए है क्योकि यह दुनिया में एकमात्र “बैठे” कृष्ण भगवान की प्रतिमा है। यहां श्री चैतन्य महाप्रभु ने इसी गोपीनाथ मूर्ति में प्रवेश करके अपनी लीला को समाप्त किया था। श्री टोता गोपीनाथ जी केंद्र में विराजमान है। उनकी प्रिय राधिका वीणा और ललिता सखी बांसुरी के रूप में उनके बाएं और दाएं स्थित हैं। शाम को 7 बजे दर्शन के दौरान पुजारी से विशेष अनुरोध करने पर आप श्री गोपीनाथ भगवान जी के दाहिने घुटने पर एक छोटी सुनहरी लकीर को देख सकते है, जहां से श्री चैतन्य महाप्रभु ने भगवान में प्रवेश किया था।

 

पुरी में स्थित प्रमुख मठ, पुरी

पुरी में मठ पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। पुरी का प्रत्येक मठ एक अलग दर्शन प्रस्तुत करता है।

इन मठों में एक गोस्वामी मठ चंदन यात्रा के अवसर पर चौसर और अलका जैसे रंगीन फूलों से बने कई प्रकार के सुंदर गहने बनाता है।

बाउली मठ सिख श्रद्धलुओं के लिए विशेष महत्त्व रखता है। जब गुरु नानक देव जगन्नाथ मंदिर आये थे तो उन्होंने कुछ समय के लिए इस स्थान पर विश्राम किया था। यहाँ गुरु ग्रन्थ साहेब रखा है और गुरु नानक देव की प्रार्थना की जाती है। यह मठ एक गुरुद्वारा की तरह है।

पुरी के प्रसिद्ध मठों में से एक गोवर्धन मठ का निर्माण भगवान शिव के अवतार शंकराचार्य ने लगभग 1000 साल पहले 9 वी शताब्दी में किया था। गोवर्धन मठ के कारण ही पुरी को चार पवित्र धामों में से एक धाम की मान्यता मिली है। श्री शंकराचार्य ने संन्यासियों के विभिन्न समूहों को एकजुट करने के लिए 4 मठों (चारधाम) गोवर्धन मठ, श्रिंगेरी में श्रृंगेरी मठ, द्वारका में चरद मठ और बद्रीनाथ में ज्योति मठ स्थापित किये थे। जिनमे में से गोवर्धन मठ एक है।

जगन्नाथ बल्लव मठ 16 वीं शताब्दी में उड़ीसा राज्य के सबसे प्रसिद्ध संतों में से एक रामानंद जी को समर्पित है। मठ के पीछे एक रमणीय उद्यान है जिसके मध्य में एक हनुमान जी का मंदिर स्थित है।

 

विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा

पवित्र सप्तपुरियों में से एक पुरी में प्रति वर्ष भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती हैं। इस रथयात्रा में पूरी दुनिया से लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं। लोग इस रथयात्रा में शामिल होकर भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) और उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के रथ को खींचते हैं, इससे उन्हें सौ यज्ञ के बराबर पुण्य लाभ मिलता हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 भाई, बलराम के रथ में 14 व बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं। इस लम्बी रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज रथ पर श्री बलरामजी, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अन्त में गरुण ध्वज पर या नन्दीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ जी का रथ चलता हैं। यह रथ उत्सव 10 दिन तक चलता हैं। जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा को निकालकर भगवान जगन्नाथ को उनकी मौसी के घर प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर पहुँचाया जाता हैं। यहाँ भगवान जगन्नाथ 7 दिन तक आराम करते हैं। इस दौरान यहाँ देशभर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं।

 

जब आप पुरी दर्शन करने का प्लान बनाये तो कम से कम 3 दिन का समय अवश्य निकालिए। पहले दिन जगन्नाथ मंदिर, बीच और अन्य प्रमुख मंदिर के दर्शन कीजियेगा। दूसरे दिन पर्यटन बस से मन को लुभाने वाला चन्द्रभागा, कोणार्क का अद्भुद सूर्य मंदिर, भगवान शिव का लिंगराज मंदिर, भगवान बुद्ध का धौलिगिरि, जैन मुनियों की उदयगिरि-खण्डगिरि की गुफाएं और सफेद शेर व दुर्लभ वन्यजीवों का नंदन कानन अभ्यारण्य देखियेगा। तीसरे दिन चिल्का लेक और समुद्र का संगम एवं डाल्फिन देखने का मौका नहीं गवाएं क्योकि अगली बार पता नहीं कब आना होगा।

 

दूसरे और तीसरे दिन ऊपर दिए गये पर्यटन स्थलों को घूमने की जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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