घृष्णेश्वर / घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग – जहाँ भक्त घुश्मा के कारण ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए महादेव

 

Grishneshwar Jyotirlinga In Hindi

Key Highlights

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग यात्रा
Grishneshwar Temple Tourist Places in Hindi

 

 

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में सह्याद्री पर्वतमालाओं के मध्य औरंगाबाद के पास वेरुल गांव में स्थित है। द्वादश ज्योतिर्लिंगस्तोत्रं के अनुसार इस बारहवें और अंतिम ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा, बारह ज्योतिर्लिंग यात्रा को पूर्णता प्रदान करती हैं। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के पश्चात् निःसंतान को संतान का सुख प्राप्त होता है और भक्तों के हर प्रकार के रोग, दुख दूर हो जाते है। विश्व प्रसिद्ध एलोरा गुफायें घृष्णेश्वर मंदिर से मात्र 500 मीटर की दूरी पर स्थित है।

 

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे पहुंचे?

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर पहुंचने के लिए सबसे पहले औरंगाबाद पहुँचना होगा। औरंगाबाद से घृष्णेश्वर की दूरी 30 कि.मी. है। औरंगाबाद से बस टैक्सी या ऑटो से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग पहुँच सकते है। अन्य निकट शहरों में शिरडी से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी 95 किमी, नासिक से घृष्णेश्वर की दूरी 171 किमी, भीमाशंकर से घृष्णेश्वर की दूरी 306 किमी है।

फ्लाइट से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग कैसे जाएँ?

छत्रपति संभाजी महाराज एयरपोर्ट घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग से 30 किलोमीटर की दूरी पर औरंगाबाद में स्थित है। औरंगाबाद एयरपोर्ट के लिए हैदराबाद, दिल्ली, उदयपुर, मुंबई, जयपुर, पुणे, नागपुर और अन्य प्रमुख शहरों से सीधे फ्लाइट उपलब्ध है। औरंगाबाद के अलावा पुणे इंटरनेशनल एयरपोर्ट घृष्णेश्वर मंदिर से 252 किमी की दूरी पर है।

ट्रेन से घृष्णेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे?

औरंगाबाद रेलवे स्टेशन के लिए देश के प्रमुख रेलवे स्टेशन से कई ट्रेन चलती है। यदि आपके शहर से औरंगाबाद के लिए डायरेक्ट ट्रेन नहीं है, तो आप मनमाड रेलवे जंक्शन पहुच सकते है। वहाँ से लगभग 22 ट्रेन औरंगाबाद के लिए चलती है। घृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग तक पहुँचने के लिए औरंगाबाद रेलवे स्टेशन के बाहर से टैक्सी या ऑटो मिल जाते है। बस से घृष्णेश्वर जाने के लिए बस स्टैंड से बस आसानी से मिल जाती है।

सड़क मार्ग से घृष्णेश्वर मंदिर कैसे पहुंचे?

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग वेरुल, सड़क मार्ग से देश के सभी हिस्सों से सरलता से जुड़ा हुआ है। औरंगाबाद के सेंट्रल बस स्टैंड से घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जाने के लिए महाराष्ट्र गवर्मेंट की बस उपलब्ध है। इसके अलावा बस स्टैंड से ही टैक्सी या जीप भी किराये पर मिल जाती है। औरंगाबाद से घृष्णेश्वर का 1 घंटे का सफ़र यादगार होता है क्योंकि रास्ते में सह्याद्री पर्वत के कई मनमोहक दृश्य दिखाई देते है।

 

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर दर्शन करने के लिए आप पूरे साल में किसी भी समय जा सकते हैं।  घृष्णेश्वर मंदिर धूमने के लिए अक्टूबर से मार्च का समय सबसे अच्छा हैं।

 

घृष्णेश्वर में कहा ठहरें?

Hotels Near Grishneshwar Temple – घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास रुकने के लिए घृष्णेश्वर मंदिर ट्रस्ट के भक्त निवास ,मौनगिरि आश्रम ,जैन धर्मशाला बनी हुई है।

Dharamshala Near Grishneshwar Temple जिनमे 700 से 2000 रूपये तक किराये पर कमरे मिल जाते है। इसके अलावा कई प्राइवेट होटल घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के आस-पास स्थित है। इनमे 500 रूपये से 1200 तक Non AC और 1200 से 5000 रूपये तक AC रूम मिल जाते है।

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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का इतिहास

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण 13 वीं शताब्दी से भी पहले किया गया था। 13 वीं और 14 वीं शताब्दी के मध्य मुगलों ने इस मंदिर पर आक्रमण किया और मंदिर को भारी हानी पहुचाई। इसके बाद 16 वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा मालोजी भोसले ने इस मंदिर का पुन: निर्माण करवाया था। 1680 और 1707 के मध्य मुगल सेना ने घृष्णेश्वर मंदिर पर कई हमले किए, जिससे फिर मंदिर क्षतिग्रस्त हुआ। 18 वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होलकर में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग का पुनर्निर्माण करवाया।

 

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की वास्तु कला और संरचना

दक्षिण भारतीय शैली में बना घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर 44,400 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसे लाल रंग के पत्थरों से बनाया गया है। घृष्णेश्वर मंदिर में तीन द्वार बने है, एक महाद्वार और दो पक्षद्वार। सभा मंड़प 24 पत्थर के स्तंभों पर बना है, इन स्तंभों पर जटिल नक्काशी की गई है। मंदिर के परिसर में लाल पत्थर की दीवारें पर भगवान विष्णु के दशावतार के द्रश्य को दर्शाया गया है और कई देवी देवताओं की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं।

 

घुश्मेश्वर / घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी

शिव पुराण के अनुसार घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार है। प्राचीन काल में सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। उनके विवाह को कई वर्ष बीत गये पर उन्हें संतान की प्राप्ति नही हुई। संतान प्राप्ति हेतु सुदेहा ने अपनी छोटी बहन घुश्मा का विवाह अपने पति से करवा दिया। घुश्मा एक शिव भक्त थी, वह प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बना कर उनकी पूजा करती थी और फिर एक सरोवर में विसर्जित कर देती थी। समय धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा और घुश्मा ने एक अति सुन्दर बालक को जन्म दिया। कुछ समय बाद सुधर्मा, घुश्मा को ज्यादा प्रेम और मान-सम्मान देने लगा। इस कारण सुदेहा को मन ही मन घुश्मा से ईर्ष्या होने लगी। एक दिन सुदेहा ने घुश्मा के पुत्र को मार कर उसके शव को उसी सरोवर में डुबो दिया, जहां घुश्मा शिवलिंगों का विसर्जन करती थी। जब घुश्मा को अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार मिला तो वह जरा भी विचलित नहीं हुई और रोज की तरह शिव की भक्ति में लीन हो कर अपने पुत्र को वापस पाने के लिए प्रार्थना करने लगी। शिवलिंग की पूजन करने के बाद जब घुश्मा शिवलिंगों का विसर्जन करने के लिए सरोवर पहुंची तो उसका पुत्र सरोवर से जीवित बाहर निकल आया। घुश्मा ने अपनी बड़ी बहन सुदेहा को माफ़ कर दिया। घुश्मा के इसी दयालुता और भक्ति से खुश होकर शिवजी उसके सामने प्रकट हो गये। उन्होंने घुश्मा से वरदान मांगने को कहा, घुश्मा ने शिवजी से वरदान मांगा कि वे हमेशा के लिए इसी स्थान पर विराजमान हो जाएँ। तभी से घुश्मा के कहने पर भगवान शिव उसी स्थान पर घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।

 

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग में ड्रेस कोड

Grishneshwar Temple Dress Code – यहाँ पर मंदिर में प्रवेश से पहले पुरुष भक्तों को शर्ट (कमीज) एवं बनियान तथा बेल्ट उतरना पड़ता है। इसके बाद ही मंदिर में प्रवेश मिलता है।

 

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के गेट पर पहुचने के बाद आप बैग, मोबाइल आदि काउंटर पर जमा कर दीजिये। शिवरात्रि और सावन में बाहर के गेट तक लाइन आ जाती है। यहाँ से मंदिर तक जाने वाले रास्ते में कई दुकाने लगी है, जहाँ से फूल, बेलपत्र और प्रसाद ले सकते है। मंदिर के परिसर में पहुचने के बाद आपको लाइन में लगना है। लाइन में आधा से एक घंटे का समय लगता है। आपको लाइन मे शर्ट और बनियान उतारने की आवश्यकता नही है, आप गर्भगृह के निकट उतार सकते है। कई बार लाइन में लग कर लोग गप शप करने लगते है, आप ऐसा न करें। आप घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग में उपस्थित है, जहाँ भगवान शिव स्वयं विराजमान रहते है। अपने मन में भगवान शिव का ध्यान करें। मन ही मन ॐ नम: शिवाय का जाप करते रहे। जाप करते करते आप मंदिर में प्रवेश करें।

मंदिर का शिल्प देखकर आप प्रसन्नचित्त हो जायेंगे। हमारे देश के मंदिर अभूतपूर्व होते है। मंदिर के अंदर नंदी जी विशाल प्रतिमा के दर्शन होंगे। गर्भगृह के अंदर जाने पर घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का टकटकी लगाकर दर्शन करते रहे। शिव ज्योतिर्लिंग की छबि को अपने मन में उतार ले, ताकि जब भी आप दर्शन करना चाहे तो पलके बंद करके उनका ध्यान करने से ही दर्शन हो जाएँ। भगवान शिव के इस रूप को मन में बसा कर बाहर आ जाएँ। बाहर आकर मंदिर के बाहरी शिल्प और ख़ूबसूरती का दर्शन कीजिये। आपका मन आनंद से भर जायेगा।

 

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन का समय

Grishneshwar Temple Timings – घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर सुबह 4:00 बजे दर्शन के लिए खुलता हैं और रात को 10.00 बजे बंद हो जाता हैं। श्रावण के महीने में मंदिर सुबह 3 बजे से रात के 11 बजे तक खुला रहता हैं।

1. मंगल आरती प्रातः 4:00 बजे
2. जलहरी सघन प्रातः 8:00 बजे
3. महाप्रसाद दोपहर 12:00 बजे
4. जलहरी सघन सायं 4:00 बजे
5. संध्या आरती 7:30 बजे (ग्रीष्मकालीन), शाम 5:40 बजे (सर्दी)
6. रात्रि आरती रात्रि 10:00 बजे

 

घृष्णेश्वर मंदिर आरती का समय

सुबह आरती 4 बजे, संध्या आरती 7:30 बजे (ग्रीष्मकालीन), शाम 5:40 बजे (सर्दी) तथा रात्रि आरती रात 10.30 बजे होती है

 

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर के निकट अन्य प्रमुख पर्यटन स्थल
एलोरा केव्‍स 

एलोरा केव्‍स महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित है, इसे वेरुल गुफाओं के रूप में भी जाना जाता है, यह भारत की एक बहुत लोकप्रिय राष्ट्रीय विरासत है, 1981 के दौरान (संयुक्त राष्ट्र शिक्षा सामाजिक सांस्कृतिक संगठन ने इन सभी गुफाओं के अद्वितीय वास्तुकार के कारण इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था। एलोरा गुफा वेरुल घाट सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के सतमाला पर्वत श्रृंखला (सात पर्वत श्रृंखला) में खुदी हुई है।यह वह स्थान है जहां आप वेरुल में एक ही स्थान पर तीन अलग-अलग भारतीय धर्मों के मठों और तीर्थस्थलों को देख या अनुभव कर सकते हैं और यह हमें गुफाओं की मूर्तियों और कलाकृतियों के माध्यम से हमारे अतीत, वर्तमान और प्राचीन कहानियों से परिचित कराता है।

 

शिवालय तीर्थ

घृष्णेश्वर मंदिर के नजदीक ही शिवालय तीर्थ स्थित है। यह वही सरोवर है जहाँ घुश्मा भगवान शिव की पूजा करती थी और भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए थे। पौराणिक कथा के अनुसार एक राजा ने शिकार करते समय गलती से, जंगल में साधना करने वाले ऋषि मुनी के साथ रहने वाले पशु को मार डाला। इस घटना से क्रोधित होकर ऋषियों ने राजा को शाप दिया, जिससे उसके सम्पूर्ण शरीर में कीड़े लग गये। राजा पीड़ा ग्रस्त होकर जंगल में इधर उधर भटकता रहा। प्यास लगने पर उसे एक पानी का कुण्ड दिखाई दिया। राजा ने जैसे ही उस कुण्ड का पानी पिया तो एक चमत्कार हुआ और उसके शरीर में लगे कीड़े नष्ट हो गये। राजा एकदम स्वस्थ हो गया। तब राजा ने उसी जगह घोर तपस्या करके भगवान ब्रम्हा को प्रसन्न किया। ब्रम्हाजी ने एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया। जिसे पहले ब्रम्हा सरोवर कहा जाता था पर बाद में इसे लोग शिवालय तीर्थ के नाम से जानते है। वर्तमान शिवालय का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था।

 

दौलताबाद किला

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से 14 किमी की दूरी पर स्थित दौलताबाद किला महाराष्ट्र राज्य के सात अजूबों’ में से एक माना जाता हैं। 1187 में बने इस किले का नाम पहले देवगिरी था। यह किला करीब 200 मीटर ऊंचा है। इस किले के अन्दर जाने का रास्ता सिर्फ एक पुल है, जिसे सिर्फ दो व्यक्ति ही एक बार में पार कर सकते हैं। इस किले को कोई भी राजा जीत नहीं सका है। दौलताबाद किले में चांद मिनार, चिनी महल और बरदरी देखने योग्य स्थल हैं।

 

पीतलखोरा गुफाएं और गौताला वन्यजीव शताब्दी

वेरुल से 49 किमी दूर यह घूमने के लिए सबसे अच्छी जगह है और यदि आप वन्य जीवन का अनुभव करना चाहते हैं तो गौताला सबसे अच्छी जगह है और यह वेरुल से केवल 38 किमी दूर है, मानसून के समय में जाने का प्रयास करें।

 

बनीबेगम गार्डन

हमाल वाडी खुलताबाद यह मुगल शैली के चारबाग पैटर्न और वास्तुकला से प्रभावित एक खुला उद्यान है, बनीबेगम यह औरंगजेब के बेटे आजम शाह की पत्नी है उनके नाम पर इस गार्डन का नाम रखा गया। औरंगाबाद से 24 किमी की दूरी पर फव्वारों, बांसुरीदार स्तंभों और विशाल गुंबदों वाला आश्चर्यजनक रूप से सुंदर बानी बेगम गार्डन है।

 

म्हैसमल हिल स्टेशन

यह औरंगाबाद का स्वर्ग है, यह वेरुल से केवल 18 किमी दूर है यदि आप मानसून और हरियाली का अनुभव करना चाहते हैं तो यह मानसून के समय के लिए सबसे अच्छी जगह है। म्हैसमल हिल स्टेशन को ‘मराठवाड़ा का महाबलेश्वर’ भी कहा जाता है। यहां हरी-भरी हरियाली, पहाड़ियाँ और  एक पठार है।

 

भद्र मारुति मंदिर खुलताबाद

भद्र मारुति मंदिर, यह पवनपुत्र यानी (पवनपुत्र) भगवान हनुमान का बहुत पुराना मंदिर है, यह खुलताबाद का बहुत लोकप्रिय मंदिर है, जब आप इस मंदिर में जाएं तो मीठा ‘खाजा’ नामक प्रसिद्ध स्ट्रीट फूड जरूर खाएं। मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति शयन मुद्रा में है। समय के साथ भद्रा मारुति मंदिर औरंगाबाद शहर के पास एक बड़ा पर्यटक स्थल बनता जा रहा है।

 

औरंगजेब का मकबरा

औरंगाबाद से 24 किलोमीटर की दूरी पर खुलताबाद गांव में औरंगजेब आलमगीर का मकबरा स्थित है। जिसे मुगल राजा खुलताबाद में औरंगजेब का मकबरा कहते थे। औरंगजेब के मक़बरे के पास ही उनके बेटे आजम शाह, उनकी पत्‍नी और उनके बेटे का मक़बरा है। औरंगाबाद से टैक्सी अथवा कैब की सुविधा पर्यटकों को आसानी से मिल जाती है।

 

घुश्मेश्वर या घृष्णेश्वर के पास विश्व प्रसिद्ध अजंता गुफाएं, एलोरा की गुफाएं स्थित है। जिन्हें देखने के लिए पूरे विश्व से पर्यटक यहाँ आते है। इसके साथ साथ औरंगाबाद में घूमने के लिए बीबी का मकबरा, सिद्धार्थ गार्डन, सलीम अली लेक, बानी बेगम गार्डन, बौद्ध गुफाएँ, जैन गुफाएं, पंचाकी, जामा मस्जिद, भद्र मारुती मंदिर, सोनेरी महल आदि प्रसिद्ध स्थल है

 

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