भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा की यात्रा, मथुरा वृंदावन यात्रा – 1

 

Mathura Tourist Places In Hindi

Key Highlights

मथुरा में घूमने की जगह

 

राधे राधे, जय श्री कृष्ण

मथुरा-वृंदावन भारत की नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के लोगो को अपनी ओर आकर्षित करता है। जगतगुरु भगवान श्री कृष्ण ने अपने बचपन और युवा अवस्था के दिन मथुरा-वृंदावन की पावन धरती पर बिताये थे। भगवान कृष्ण की लीलाएं यहाँ के मंदिरों में, यहाँ की हवाओं में, यहाँ के कण कण में बसी है। यहाँ के भजन, कला, चित्रकारी और संस्कृति देश की अमूल्य धरोहर हैं। अब हम चलते है, मथुरा-वृन्दावन के प्रसिद्ध स्थलों की यात्रा पर….

 

मथुरा यात्रा

उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित, भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा का हर आकर्षण किसी न किसी माध्यम से भगवान कृष्ण से जुड़ा है। हमारे इस महत्वपूर्ण तीर्थस्थान पर भगवान कृष्ण और राधा को समर्पित कई मंदिर हैं। यमुना नदी के किनारे बसा मथुरा को भारत के आध्यात्मिक स्थल के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रतीक भी माना जाता है। समूचे विश्व से कई लोग शान्ति और ज्ञान की प्राप्त करने के लिए यहाँ के आश्रमों और मंदिरों की ओर रुख करते हैं।

 

मथुरा कैसे पहुंचे

दिल्ली से लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थित मथुरा आप विभिन्न साधनों से पहुंच सकते हैं।

फ्लाइट से मथुरा से कैसे पहुँचे?

मथुरा में कोई एयरपोर्ट उपलब्ध नहीं है, मथुरा का निकटतम एयरपोर्ट  आगरा में है। आगरा से मथुरा की दूरी करीब 61 किलोमीटर है। आगरा में बहुत कम फ्लाइट संचालित होती है, इसलिए दूसरा विकल्प दिल्ली में स्थित इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यहाँ आपको भारत या विदेश से आसानी से फ्लाइट उपलब्ध हो जाएगी। इसके बाद आप दिल्ली से मथुरा बस, टैक्सी या ट्रेन की मदद से पहुंच सकते हैं। दिल्ली से मथुरा की दूरी 165 किलोमीटर है।

रेल मार्ग से मथुरा कैसे पहुँचे?

मथुरा जंक्शन पश्चिम, उत्तर और दक्षिणी भारत से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ हैं। देश की ज्यादातर ट्रेनें मथुरा रेल्वे जंक्शन में रुकती हैं। इसके अलावा मथुरा कैंट और भूतेश्वर रेल्वे स्टेशन अन्य रेलवे स्टेशन है। आपको मथुरा रेल्वे जंक्शन में ही उतरना है। रेल्वे स्टेशन से मंदिर तक पहुंचने के लिए टैक्सी, ऑटो, रिक्शा आसानी से उपलब्ध हैं।

सड़क मार्ग या बस से मथुरा कैसे पहुँचे?

मथुरा जाने के किये अपनी कार या निजी वाहन एक अच्छा विकल्प है। सड़क मार्ग यात्रा करने के लिए दिल्ली, आगरा और भारत के अन्य शहरों से मथुरा तक लक्जरी बसें भी बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं। नई दिल्ली से मथुरा के लिए कैब्स और निजी टैक्सी सेवाएं सस्ती कीमतों पर आसानी से उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजमार्ग मथुरा को देश के प्रमुख शहरों से जोड़ते हैं। एनएच 2 (दिल्ली-हावड़ा) राजमार्ग शहर से गुजरता है और राष्ट्रीय राजमार्ग 3 (मुंबई ) से जुड़ता है, जिसका एक हिस्सा मथुरा रोड के नाम से जाना जाता है। एनएच -11 (आगरा से बीकानेर) और एनएच-9 3 (मोरादाबाद) से भी मथुरा पंहुचा जा सकता है। दिल्ली से यमुना एक्सप्रेसवे भी मथुरा से जुड़ता है। उत्तर प्रदेश राज्य मथुरा के लिए लगभग 120 बसें चलाता है। राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, डीटीसी, चंडीगढ़ और पंजाब राज्य परिवहन की बस कंपनियों द्वारा बस सेवा उपलब्ध है।

 

मथुरा दर्शन करने का सबसे अच्छा समय

मथुरा दर्शन करने के लिए आप साल में किसी भी समय आ सकते है क्योकि भगवान श्री कृष्ण के दर्शन के लिए हर समय अच्छा होता है। मौसम के अनुसार मथुरा घूमने के लिए अक्टूबर से मार्च के महीनों में वातावरण अच्छा होता हैं। इन दिनों में मथुरा का मौसम सुहावना होता है। यदि आप उत्सव का आनंद लेना चाहते है, तो होली के समय, जन्माष्टमी के समय और राधा अष्टमी के समय यहां उत्सव मनाया जाता है। इस उत्सवों में सम्मलित होना एक सुखद और धार्मिक अहसास होता है।

 

मथुरा में कहाँ रुके

मथुरा में रुकने की जगह  – श्रीकृष्ण जन्म स्थान के पास ही श्रीकृष्ण जन्म मंदिर समिति का विश्राम गृह, कई होटल और धर्मशालाएं बनी है। धर्मशालाओं में 200-500 रूपये तक कमरे मिल जाते है और प्राइवेट होटल में भी रु.500 से 5000 तक AC और Non AC कमरे मिल जाते है।

मथुरा में धर्मशालाओं की जानकारी, कम कीमत में अच्छी धर्मशाला

 

मथुरा का निर्माण कैसे हुआ?

सतयुग में मधु नाम के दैत्य ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। भगवान शिव ने वरदान स्वरूप उसे एक त्रिशूल दिया था और कहा कि यह त्रिशूल जब तक उसके पास है, तब तक उसे कोई नहीं हरा सकता। मधु दैत्य ने शिवजी से प्राप्त त्रिशूल अपने पुत्र लवणासुर को दिया। राक्षस लवणासुर ने त्रिशूल की शक्ति पाकर ऋषि मुनि और जन मानस पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। जब प्रभु श्रीराम को इस बारे में पता चला तो उन्होंने अपने छोटे भाई शत्रुघन को लवणासुर का वध करने का आदेश दिया। शत्रुघन ने लवणासुर के बारे में जानने के लिए महामुनि भार्गव से संपर्क किया। महामुनि ने शत्रुघन को बताया कि जब लवणासुर  वन में शिकार करने जाता है। तो त्रिशूल शिव मंदिर में छोड़कर जाता है। तभी उसका वध करना संभव हो पायेगा। तब शत्रुघन जी ने इसी युक्ति का प्रयोग कर लवणासुर का वध जंगल में कर दिया। लवणासुर के वध के पश्चात् शत्रुघन जी ने मधुवन को काटकर मथुरा नगरी का निर्माण करवाया। मथुरा तो सतयुग से बसा हुआ है। भगवान श्री विष्णु ने जब द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में मथुरा में जन्म लिया, तब भगवान श्रीकृष्ण के वजह से मथुरा को धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व प्राप्त हुआ।

 

मथुरा के प्रसिद्ध मंदिर और मथुरा के दर्शनीय स्थल

 

श्री कृष्ण जन्म भूमि मंदिर दर्शन

कृष्ण जन्म भूमि मंदिर, मथुरा का प्रमुख मंदिर है, जो देखने में बहुत भव्य और भारतीय वास्तुकला का एक अद्भुद उदाहरण है। इसी दिव्य स्थान पर बनी जेल की कोठरी में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। श्री कृष्ण जन्मस्थली के प्रमुख द्वार पर दो द्वारपाल की मूर्तियाँ बनी है। द्वार के ऊपर भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के रथ के सारथी बने दिखाई देते है। लाइन में लगने के बाद बहुत कड़ी सुरक्षा से गुजरकर हमें अन्दर जाना होता है। यह मंदिर तीन भागों में बटा है, गर्भगृह, केशवदेव मंदिर और भगवत भवन। जिस स्थान पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ वह स्थान गर्भगृह में स्थित है। यहाँ खुदाई में मिले 1500 वर्ष पुराने सिहांसन को सुरक्षित रखा गया है। औरंगजेब ने मंदिर को तुड़वाकर ईदगाह बनवाई थी, तब गर्भगृह ईदगाह के नीचे दब गया था।

गर्भगृह के ऊपर एक बरामदे में संगमरमर का एक चबूतरा बना है। यह केशवदेव मंदिर सबसे प्राचीन है। यहाँ भगवान श्री कृष्ण के अतिसुन्दर बाल कृष्ण रूप में दर्शन होते है। इसके अलावा यहाँ जगन्नाथ मंदिर भी है, जहाँ भगवान जगन्नाथ के साथ सुभद्रा और बलराम जी की मूर्तियाँ स्थित है। यहाँ अन्य मंदिरों में सीताराम लक्ष्मण मंदिर, महादेव मंदिर, हनुमान मंदिर, शेरावाली माता मंदिर आदि बने हुए है। यहाँ खम्बों पर भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है। मंदिर की छत पर भगवान कृष्ण की रासलीला और अन्य लीलाओं के बहुत सुन्दर चित्र बने हुए है। मंदिर की परिक्रमा में ताम्रपत्र पर सम्पूर्ण श्री भगवत गीता लिखी हुई है। इन सभी द्रश्यों की अपने मन में उतार लीजिये, ये आपको जीवन भर याद रहेंगे।

कृष्ण जन्म भूमि खुलने का समय

अप्रैल से नवंबर : सुबह 5.00 बजे से 12.00 बजे और शाम 4.00 से 9.30 तक

नवंबर से अप्रैल : सुबह 5.30 से 12.00 बजे और दोपहर 3.00 से 8.30 तक

 

पोतरा कुण्ड

श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास विशाल और पवित्र पोतराकुंड स्थित है। माता देवकी ने भगवान श्रीकृष्ण का जन्म होने के बाद उनके वस्त्र-उपवस्त्र इसी कुंड में धोए थे। इसलिए इस कुण्ड को पोतरा कुण्ड कहा जाता है। इस कुंड में पानी अंदरूनी स्त्रोतों से भरा जाता रहा है। कृष्ण भक्त, जन्मस्थान मंदिर का दर्शन करने के बाद यहाँ भी दर्शन करने आते है।

 

द्वारकाधीश मंदिर

मथुरा के सबसे प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक द्वारकाधीश मंदिर 1814 में सेठ गोकुल दास पारीख ने बनवाया था यह मंदिर यमुना नदी के किनारे विश्राम घाट के समीप स्थित है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण के द्वारकाधीश स्वरुप के दर्शन करते ही मन भक्तिभाव जाग उठता है। श्री द्वारकाधीश जी के बायीं ओर श्री रुक्मणी जी बिराजमान है। श्री द्वारकाधीश के निकट लड्डू गोपाल और श्री राधा भी विराजित है। श्री द्वारकाधीश मन्दिर को एक बार देख लेने पर भी मन्दिर से नजर ही नहीं हटती है। मंदिर में सुन्दर नक्काशी, कला और चित्रकारी देख कर ऐसा लगता है, जैसे हम द्वापरयुग में ही आ गये हो।

श्री द्वारकाधीश मंदिर के दर्शन का समय

6:30 am – 10:30 am

4:00 pm – 7:00 pm

 

विश्राम घाट

मथुरा के आकर्षक स्थलों में एक विश्राम घाट द्वारिकाधीश मन्दिर से 30 मीटर की दूरी पर स्थित है। मथुरा के 25 घाटों में यह प्रमुख घाट है। भगवान कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध करने के बाद इस घाट पर विश्राम किया था, इसलिए इसे विश्रामघाट कहते है। इस घाट पर यमुना जी का अति सुंदर मंदिर स्थित है। यहाँ पर सुबह और शाम के समय यमुना जी की भव्य आरती का आध्यात्मिक और मनोरम द्रश्य देखने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उपस्थित होती है।

 

शक्तिपीठ माँ चामुण्डा देवी मंदिर

मथुरा-वृन्दावन मार्ग पर स्थित माँ चामुण्डा देवी मंदिर, देवी सती 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस स्थान पर देवी सती के केश गिरे थे। भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग को मुक्ति देने के बाद यही पर माता चामुंडा के दर्शन किये थे। मां चामुण्डा नन्द बाबा की कुल देवी थी, सरस्वती कुंड में भगवान श्री कृष्ण का मुंडन कराने के बाद उन्होंने यहाँ पर माता चामुंडा की पूजा की थी। इस मंदिर में स्थित माँ चामुण्डा की प्रतिमा स्थापित नही की गई है, बल्कि वह स्वयं उत्पन हुई है।

 

माँ गायत्री तपोभूमि

माँ चामुण्डा देवी मंदिर के सामने महर्षि दुर्वासा की तपस्थली में गायत्री तपोभूमि स्थित है। गायत्री तपोभूमि विश्व का प्रथम गायत्री मंदिर है। पंडित श्री राम आचार्य ने 30.05.1953 से 22.06.1953 तक मात्र गंगाजल लेकर उपवास किया तथा विश्वमाता गायत्री की स्थापना एवं प्राण प्रतिष्ठा की। अनेक साधको द्वारा 24 लाख गायत्री मंत्र का जप, सवा लाख गायत्री चालीसा का पाठ, यजुर्वेद, गीता, रामायण का पाठ, गायत्री सहस्त्रनाम, गायत्री कवच, दुर्गा सप्तशती का पाठ, महामृत्युजय मंत्र का जप आदि महान कार्यो का संपादन यही हुआ।

 

गीता मंदिर (बिड़ला मंदिर)

बिरला परिवार के द्वारा नया बना गीता मंदिर मथुरा के पर्यटक स्थलों में से एक है। इस मंदिर में श्रीमद भगवद गीता के अध्याय को एक लट्ठे पर अंकित किया गया है। यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण की विशाल प्रतिमा स्थापित है। देवालय के निकट एक लाल पत्थर के स्तंभ पर सम्पूर्ण गीता उत्कीर्ण की गई है। इस मंदिर की चित्रकारी और वास्तुकला भारतीय एवं पाश्चात्य शैली का समावेश है। विशेष अवसरों पर गीता मंदिर को विद्युत् साज सज्जा देखकर आनंद आ जाता है।

 

कंस का किला

भगवान कृष्ण के मामा, राक्षस राज कंस का महल यमुना नदी के तट पर स्थित है। इस किले में देखने लायक बाहर स्थित पुराना दर्शक कक्ष है। इस कक्ष में लाल बलुआ पत्थरों के बने कई विशाल स्तंभ हैं। यह खंडहर हो चुका किला अभी भी इसकी पूर्व भव्यता को दर्शाता हैं। प्राचीन समय में इस किले का उपयोग बाढ़ से बचाने के लिये किया जाता था।

 

राजकीय संग्रहालय मथुरा

मथुरा में जब दोपहर में सभी मंदिर बंद रहते है, तब इस समय मथुरा में घूमने लायक जगह मथुरा संग्रहालय है। इस संग्रहालय में महात्मा बुद्ध की प्रथम प्रतिमा मौजूद है। मथुरा में ब्रिटिश शासन के दौरान बुद्ध, महावीर, मौर्या, शुंगकाल, शक, उत्तर शुंगवंश, कुषाण काल, गुप्त काल, पूर्व और उत्तर मध्य काल की कई दुर्लभ कलाकृति, संस्कृति से सुसज्जित मूर्तियां निकली गई। इस संग्रहालय में मथुरा का हजारों वर्ष पुराना कुषाण, गुप्त और मौर्य काल की बेजोड़ कला का भंडार है। जो आदि काल के राजाओं के पहनावे, उनके शस्त्र, अस्त्र और जीवन शैली को दर्शाता हैं।

 

गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर

मथुरा अपने चारों कोनो पर भगवान शिव के मंदिर स्थित है। पूर्व दिशा में गर्तेश्वर महादेव, पश्चिम दिशा में भूतेश्वर, दक्षिण दिशा में रंगेश्वर महादेव और उत्तर दिशा में गोकर्णेश्वर महादेव का अति प्राचीन मंदिर स्थित है। गाय के कान से जन्म होने के कारण ही वे गोकर्णनाथ कहलाए। मंदिर में स्थापित गोकर्ण महादेव जी की मूर्ति में उनका उल्टा हाथ अपने लिंग पर है तो दूसरा हाथ मन के ऊपर रखा हुआ है। अर्थात हर व्यक्ति को अपनी इन दो ही चीजों पर नियंत्रण रखना है, क्योंकि मनुष्य का मन  और काम यह दोनों ही बहुत गतिमान होते है।

 

गर्तेश्वर महादेव मंदिर

गर्तेश्वर महादेव मंदिर श्री कृष्ण जन्मभूमि के पीछे मल्लपुरा में स्थित है। यह मथुरा के प्राचीन मंदिरों में से एक है। भगवान गर्तेश्वर महादेव पूर्वी सीमा के क्षेत्रपाल के रूप में जाने जाते है।

 

तिलक(होली गेट) द्वार, भूतेश्वर महादेव मंदिर, श्री रंगेश्वर महादेव मंदिर, जय गुरुदेव मंदिर और जैन मंदिर आदि मथुरा के अन्य दर्शनीय स्थल है। जहाँ आप समय के अनुसार भेट दे सकते है।

 

मथुरा के प्रसिद्ध स्थानीय भोजन

मथुरा अपने मिठाइयों और दूध से बने व्यंजनों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहाँ के पेड़े विश्व प्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ की लस्सी, लच्छेदार रवड़ी, राजभोग और अन्य मिठाइयों का स्वाद आप जीवन भर भूल नहीं पाएंगे। यहाँ के लाजवाब चटपटे व्यंजनों में आपको कचौरी, जलेबी, पानीपुरी, समोसा, चाट और आलू टिक्की का स्वाद जरुर लेना चाहिए।

 

मथुरा में शॉपिंग

मथुरा में ज्यादातर पूजा और प्रार्थना से संबंधित वस्तुओं में किस्में मिलेंगी। आपको यहाँ मोती की माला, पीतल की मूर्तियां और पूजा के लिए बर्तन पसंद आयेंगे। इस वस्तुओं से आपका घर और मंदिर अधिक सुंदर बन जायेगा और मथुरा की याद भी बन जाएगी। आप मथुरा में इनके अलावा देवी-देवताओं के मंदिर, अष्टधातु से बनी प्रतिमाएं भी खरीद सकते हैं।

 

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मथुरा वृन्दावन में घूमने की जगह

वृन्दावन यात्रा का विवरण नीचे दिया गया है।

 

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5 thoughts on “भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा की यात्रा, मथुरा वृंदावन यात्रा – 1

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  • May 20, 2023 at 11:51 am
    Permalink

    महोदय नमस्कार,

    उपरोक्त लेख में आपके द्वारा दी गयी जानकारी बहुत उपयोगी है | आपके द्वारा प्रत्येक आवश्यक विषय व स्थान के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है जो कि पाठको के लिए बहुत लाभदायाक होती है |

    अभी कुछ समय पहले ही मैं आपके द्वारा दक्षिण भारत के मंदिरों के बारे में प्रदान की गयी जानकारी के आधार पर दक्षिण भारत ( कोयम्बतूर, मदुरै, रामेस्वरम, कन्याकुमारी एंव पदमनाभ स्वामी) की यात्रा कर के आया हूँ | आपके द्वारा मंदिरों के अतिरिक्त वहां घुमने और ठहरने के विषय में इतने अच्छे से बताया गया था कि मुझे प्रत्येक स्थान पर ठहरने, घुमने और मंदिरों के दर्शनों की योजना बनाने में आपके लेख द्वारा बहुत अधिक सहायता मिली |

    अब चूँकि निकट भविष्य में हमने श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा एंव वृन्दावन के दर्शनार्थ जाना है इसलिए आपके द्वारा दी गयी जानकारी प्राप्त करने आया हूँ |

    आपका एक बार फिर से धन्यवाद |

    आपका सदभावी,

    संदीप राठोड़,
    हि० प्र०

    Reply
    • May 31, 2023 at 9:59 am
      Permalink

      आपके शब्दों से हमें प्रेरणा मिलती है
      आपको कोटि कोटि धन्यवाद

      Reply

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