Puri Bhubaneswar Me Ghumne Ki Jagah – पुरी और भुवनेश्वर के निकट पर्यटन स्थलों का सुहाना सफ़र

 

Puri Me Ghumne Ki Jagah

Bhubaneswar Me Ghumne Ki Jagah

 

Puri Bhubaneswar Me Ghumne Ki Jagah – जब आप पुरी दर्शन करने का प्लान बनाये तो कम से कम 3 दिन का समय अवश्य निकालिए। पहले दिन जगन्नाथ मंदिर, बीच और अन्य प्रमुख मंदिर के दर्शन कीजियेगा। दूसरे दिन पर्यटन बस से मन को लुभाने वाला चन्द्रभागा, कोणार्क का अद्भुद सूर्य मंदिर, भगवान शिव का लिंगराज मंदिर, भगवान बुद्ध का धौलिगिरि, जैन मुनियों की उदयगिरि-खण्डगिरि की गुफाएं और सफेद शेर व दुर्लभ वन्यजीवों का नंदन कानन अभ्यारण्य देखियेगा। तीसरे दिन चिल्का लेक और समुद्र का संगम एवं डाल्फिन देखने का मौका नहीं गवाएं क्योकि अगली बार पता नहीं कब आना होगा।

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पहले दिन जगन्नाथ मंदिर, बीच और अन्य प्रमुख मंदिर के दर्शन की जानकारी के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

जगत के नाथ जय-जय जगन्नाथ, जगन्नाथ पुरी धाम दर्शन

 

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पहले दिन आप ट्रेवल्स पर जाकर बस की टिकिट बुक कर लीजिये। Non AC बस की टिकट 400 रूपये और AC बस की टिकट 600 रूपये की मिलती है। यह बस चन्द्रभागा, कोणार्क, धौलगिरी, उदयगिरि-खण्डगिरि की गुफाएं, लिंगराज मंदिर और अंत में नंदन कानन अभ्यारण्य घुमाते हुए शाम के सात बजे तक पुरी वापस लौटती हैं। अब चलते है सुहाने सफ़र पर …

 

Puri Bhubaneswar Me Ghumne Ki Jagah

मन को लुभाने वाला चन्द्रभागा समुद्र तट

रास्ते में बस की खिड़की से बाहर रबर के पेड़, नदी, नाले को देखते-देखते आपकी बस चन्द्रभागा बीच पर पहुँच जाएगी। यहाँ के समुद्र की दूधिया लहरें, ठंडी-ठंडी हवा और मनोरम प्राकृतिक सुंदरता देखकर आपका मन आनन्दित हो उठेगा। इस मनमोहक समुद्री बीच पर घूमने के साथ-साथ आप तैराकी, नौका विहार और मोटर राइड का मजा भी ले सकते है, मोटर राइड का किराया 100 रूपये है। कहते है कृष्ण के पुत्र साम्बा को कोढ़ का रोग हो गया था, जिसे ठीक करने के लिए उन्होंने चंद्रभागा नदी के किनारे सूर्य देवता की आराधना की थी। यहाँ से दो किमी दूर चंद्रभागा नदी में साल में एक बार, कुछ घंटों के लिए पानी आता है। तब हजारों श्रद्धालु इस नदी में स्नान कर का पुण्य कमाते है।

 

कोणार्क का अद्भुत सूर्य मंदिर

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हमारी बस का अगला स्टाप है, देश के सबसे बड़े और भव्य 10 मंदिरों में से एक कोणार्क का सूर्य मंदिर, जो भारत की प्राचीन धरोहरों में से एक है। यूनेस्को ने सन् 1984 में इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। भगवान सूर्य को समर्पित इस मंदिर की आश्चर्यचकित कर देने वाली संरचना इस प्रकार की गई है जैसे 12 विशाल पहियों पर आधारित एक विशाल रथ को 7 ताकतवर बड़े घोड़े खींच रहे हों। इस रथ पर भगवान सूर्य नारायण विराजमान है। हमारी भारतीय मुद्रा 10 के  नोट में इस मंदिर की छबि अंकित की गई है। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य से निकली लालिमा से पूरा मंदिर लाल-नारंगी रंग से सराबोर हो जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब ने कोढ़ के उपचार के लिए चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर बारह वर्ष तपस्या करके सूर्य देव को प्रसन्न किया। जब सूर्यदेव उनके रोग का अन्त किया। तब साम्ब ने कोणार्क में सूर्य भगवान का एक मन्दिर निर्माण का संकल्प लिया। उन्हें चंद्रभागा नदी में देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा की बनाई हुई सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली। जिसे साम्ब ने अपने बनवाये मित्रवन के एक मन्दिर में इस मूर्ति को स्थापित कर दिया।

 

भगवान शिव का लिंगराज मंदिर

अब हम पहुचेंगे भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर में, जहाँ आधे श्री विष्णु और आधे भगवान शिव का त्रिभुवनेश्वर रूप है। उनका यह रूप  हरि-हर नाम से भी प्रसिद्ध है। आपको अपनी जगन्नाथ धाम यात्रा को पूर्ण करने हेतु इस मंदिर के दर्शन अवश्य करना चाहिए। आप जूते, चप्पल, मोबाइल, बैग आदि बस में ही उतार दीजिये, इससे आपको मंदिर में अधिक समय मिलेगा। आपको सबसे पहले भगवान गणेशजी के दर्शन, फिर गोपालनीदेवी, फिर शिवजी के वाहन नंदी की के दर्शन तत्पश्तात भगवान लिंगराज के दर्शन के लिए गर्भगृह में प्रवेश करना है। गर्भगृह में आठ फ़ीट मोटे तथा क़रीब एक फ़ीट ऊँचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू शिवलिंग को ध्यानपूर्वक निहारते रहे। मन ही मन भगवान की स्तुति करते रहे और भगवान के इस अद्भुद शिवलिंग को अपने ह्दय में बसा लें। 1400 वर्ष से भी पुराने  इस मंदिर का वास्तुशिल्प बेहद उत्कृष्ट है। पुराणों के अनुसार देवी पार्वती ने यहीं पर लिट्टी व वसा नाम को दो राक्षसों का वध किया गया था। राक्षसों का वध करने के बाद देवी पार्वती को जब प्यास लगी तो भगवान शिव ने एक सरोवर बनाया और उसमें सभी पवित्र नदियों का आवाहन किया। यही बिंदुसागर सरोवर लिंगराज मंदिर के निकट स्थित है।

 

भगवान बुद्ध का धौलिगिरि हिल्स

अगला स्टॉप धौलिगिरि हिल्स, भुवनेश्वर से लगभग 8 किमी दूर एक शांत स्थल है। इसी धौली पहाड़ी पर कलिंग साम्राज्य और मौर्य साम्राज्य का विशाल युद्ध हुआ था, जिसके भीषण रक्तपात से आहत होकर सम्राट अशोक ने बौध धर्म अपना लिया था। अब यहाँ गुंबद के आकार वाले शांति पैगोडा या धौली शांति स्तूप स्थित है। इस धौली शांति स्तूप में भगवान बुद्ध के पैरों के निशान वाले पत्थर और बोधि वृक्ष मौजूद हैं। इसके निकट एक पहाड़ी के शिखर पर एक बड़े चट्टान में अशोक के शिलालेख भी उत्कीर्ण है।

 

जैन मुनियों की उदयगिरि-खण्डगिरि की गुफाएं

Udayagiri and Khandagiri Caves Puri Bhubaneswar Tourist Places Puri Bhubaneswar Tourist Places

लिंगराज मंदिर के दर्शन के बाद हमारा अगला पड़ाव उदयगिरी और खंडगिरी, भुवनेश्वर से करीब 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। इस दोनों पहाड़ियों में कई गुफाएं हैं, जिनमें से अधिकांश गुफाएं जैन भिक्षुओं और राजा खारवेल के कारीगरों ने बनाई हैं। उदयगिरि में 18 गुफाएं और खंडगिरि में 15 गुफाएं हैं। ये गुफाएं प्राचीन भारत की स्थापत्य कला की साक्षी होने के साथ-साथ प्रेम, करुणा और धार्मिक सहिष्णुता की संदेश वाहक भी हैं। पहली शताब्दी ईसा पूर्व से पहले की बनी ये उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाएं भारत के आश्चर्यो में से एक है। पहली गुफा रानी गुफा में बाहरी बरामदे की बनावट और मंदिर की मूर्तिकला बनी हुई है। इसके ऊपर गणेश गुफा में दीवारों पर हाथी की मूर्तियां और सीताहरण की घटना उत्कीर्ण की गई है। इन गुफाओं के अलावा अनंत गुफा, व्याघ्र गुफा, सर्प गुफा और जैन गुफा भी हैं। ये गुफाएं एक-दूसरे के साथ सीढ़ियों से जुड़ी हुई हैं। इन गुफाएं को देखते समय वानर सेना से सावधान रहे और खाने पीने की वस्तुएं न निकालें।

 

सफेद शेर व दुर्लभ वन्यजीवों का नंदन कानन

बस का अंतिम स्टाप, हरे-भरे जंगलों के बीच 400 हेक्टियर में फैला नंदनकानन जू के साथ-साथ बॉटनिकल गार्डन भी है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता, 126 प्रजाति के जंगली जानवर और कुछ दुर्लभ हरे-भरे पेड़-पौधे आपको सुरक्षित जंगल में घूमने की अनुभूति देते हैं। यह मात्र एक चिड़ियाघर ही नहीं बल्कि एक विशाल वन्य जीव उद्यान या अपने आप में पूरा का पूरा जंगल है। नंदन कानन विशेष रूप से सफेद बाघों के लिए प्रसिद्ध है। बाघों में जीन दोष के कारण शावक का रंग सफेद हो जाता है। यही सफ़ेद दुर्लभ रूप के कारण बंगाल टाइगर विश्व प्रसिद्ध है। आप यहाँ सफेद बाघों के अलावा कई दुर्लभ जीव गिद्ध, मेलेनिस्टिक टाइगर, पांगोलिन, लुप्तप्राय रटेल आदि देख सकते है। यहाँ पर झील में घड़ियाल, हिप्पो और अलग-अलग प्रजाति के हज़ारों पक्षी प्राकृतिक निवास में आपके स्वागत के लिए तैयार मिलते हैं।

ध्यान रहे नंदन कानन सोमवार को बंद रहता है, इसलिए इस सफ़र पर सोमवार को न निकले। बाकि दिनों में अक्टूबर से मार्च सुबह 8 से 5 बजे तक और सालभर सुबह 7.30 से 5.30 तक खुला रहता है।

 

अविस्मर्णीय यादों का सफ़र चिल्का लेक

भारत की सबसे बड़ी और विश्व की दूसरी सबसे बड़ी समुद्री झील, चिल्का लेक जाने के लिए आपको एक दिन पहले ही बस बुक करना होगा। बस की टिकट 150 रुपये लगती है। आपको तीसरे दिन बस निकलने से पहले टाइम पर बस तक पहुँचना है। पुरी से चिल्का तक जाने में 2 घंटे का समय लगता है। चिल्का झील के किनारे आपको बोट बुक करना है। कॉमन बोट का किराया 250 रूपये लगता है। जिसमे 15-18 लोग बैठते है। यदि आप पर्सनल बोट बुक करना चाहते है, तो उसका किराया 3000 – 3500 रूपये तक लगता है।

 

चिल्का झील की लम्बाई 70 किलोमीटर और चौड़ाई 15 किलोमीटर है। लगभग 90 मिनिट के सफ़र के बाद आप डाल्फिन व्यू प्वाइंट पर पहुचते है। यहां सब नाव वाले एक दूसरे के सहायक होते है। जैसे ही पानी में डाल्फिन की हलचल होती है, सभी नावें स्पीड बढ़ा कर उसी तरफ भागने लगती है। यहाँ आप समुद्र में गोते लगाती इरावाडी डॉल्फिन, कॉमन डॉल्फिन, बॉटल नोज़ डॉल्फिन और व्हाइट नोज़्ड डॉल्फ़िन को देख सकते हैं।

 

कुछ देर बाद बोट आपको एक आइलैंड पर उतर देगी। इस आइलैंड पर 40 मिनिट का स्टॉप होगा। यहाँ पर आपको चिल्का झील और समुद्र के संगम का अविस्मर्णीय द्रश्य दिखाई देगा। इस द्रश्य देखकर आपको ऐसा लगेगा जैसे स्वयं प्रकृति में यहाँ का श्रंगार किया हो। यहाँ कुछ मछुआरे आपको मोती बेचने की कोशिश करेंगे, आपको उनका सीप में से मोती निकलना बिलकुल असली प्रतीत होगा पर आप सावधान रहें, ये नकली मोती है।

अब आपका वापसी का काफी लम्बा सफर शुरू होता है। सफ़र के दौरान बीच में कई टापू के साथ साथ समुद्र का मुहाना भी दिखायी देता है। इस झील में सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा आपको एक अलग ही अनुभव देता है। चिल्का झील के तटीय क्षेत्र में सुनहरा सियार, चित्तीदार हिरण, काला हिरन और हाइना जैसे कई जंगली जानवर और जलीय क्षेत्र में मछलियों की 225 से अधिक प्रजातियां, झींगे, छिपकलियां व समुद्री वन्यजीव भी आप देख सकते हैं। किनारे पर पहुचकर आप रेस्टोरेंट में नाश्ता या खाना खा लीजियेगा। लगभग  2 घंटे के सफ़र में अपने मन में इस विशाल चिल्का लेक की यादों  को समेटे हुये आप पुरी पहुँच जायेगे।

 

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जगन्नाथ मंदिर, बीच और अन्य दर्शनीय स्थलों की जानकारी का लिंक नीचे दिया गया है।

जगत के नाथ जय-जय जगन्नाथ, जगन्नाथ पुरी धाम दर्शन

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Dharamshala in Puri – जगन्नाथ पुरी में धर्मशालाओं की जानकारी, अच्छी धर्मशाला कम किराये में

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