सोमनाथ यात्रा – अतुलनीय, अकल्पनीय, अमूल्य और अलौकिक अनुभव
Somnath Yatra in Hindi
Somnath Places to Visit in Hindi
सोमनाथ के बारे में
देवों के देव महादेव ने शिव पुराण और नंदी उपपुराण में कहा है कि मै हर स्थान पर विद्यमान हूँ, विशेष रूप से 12 रूपों और स्थानों में ज्योतिर्लिंगों के रूप में’। श्री सोमनाथ इन 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों में प्रथम स्थान पर है। सर्वप्रथम इसका निर्माण चंद्रदेव ने करवाया था। जिसका उल्लेख ऋग्वेद में दिया गया है। भगवान श्री कृष्ण ने यहीं से भालुका तीर्थ में देह त्यागकर वैकुंठ गमन किया था। कहते हैं कि जब महमूद गजनबी ने सोमनाथ मंदिर को देखा, तब सोमनाथ के मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थित था। महमूद गजनबी इसे देखकर आश्चर्यचकित रह गया था। उस समय यह प्राचीन वास्तुकला का एक अद्भुद उदाहरण था। चुम्बक की शक्ति के कारण यह शिवलिंग हवा में ही स्थित था। उसके अत्यंत वैभवशाली होने की वजह से महमूद गजनबी और अन्य विदेशी ताकतों ने इस मंदिर की संपत्ति को लूटा। वर्तमान मंदिर का पुनः निर्माण लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने 1 दिसंबर 1995 को इसे राष्ट्र को समर्पित किया। इसके साथ ही यहाँ त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्व है। यहां पर तीन पवित्र नदियों हिरण,कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है।
सोमनाथ कैसे पहुँचे ?
एयरप्लेन से सोमनाथ कैसे पहुँचे ?
सोमनाथ में एयरपोर्ट नहीं है। सोमनाथ के सबसे निकट केशोद एयरपोर्ट है, जो सोमनाथ मंदिर से 55 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ से आप बस और टैक्सी के माध्यम से सोमनाथ आ सकते है। इसके अलावा दीव एयरपोर्ट 85 किमी, पोरबंदर एयरपोर्ट 150 किमी, राजकोट एयरपोर्ट 200 किमी और अहमदाबाद एयरपोर्ट 420 किमी की दूरी पर स्थित है।
रेल मार्ग से सोमनाथ कैसे पहुँचे ?
रेल मार्ग सोमनाथ पहुचने का सबसे अच्छा साधन है। सोमनाथ रेलवे स्टेशन के लिए जबलपुर जंक्शन,अहमदाबाद जंक्शन,राजकोट जंक्शन,ओखा और पोरबंदर से दैनिक ट्रेन यहाँ आती जाती है। अगर आपके शहर से सोमनाथ के लिए डायरेक्ट ट्रेन नहीं है तो आप राजकोट जंक्शन या अहमदाबाद जंक्शन आकार ट्रेन या अन्य माध्यम से सोमनाथ आ सकते है।
सडक मार्ग से सोमनाथ कैसे पहुँचे ?
सोमनाथ सड़क मार्ग से देश के सभी हिस्सों से जुड़ा होने के कारण एक बहुत ही आसान और सुविधाजनक विकल्प है। आसपास के कई राज्य से सरकारी और निजी लग्जरी बसें,नॉन-एसी और एसी बसें सोमनाथ के लिए चलती हैं।
सोमनाथ में रुकने की व्यवस्था ?
सोमनाथ ट्रस्ट में रुकने के लिए कमरों की व्यव्स्था है। आप सोमनाथ ट्रस्ट की वेबसाइट www.somnath.org पर ऑनलाइन बुकिंग के माध्यम से AC या Non AC रूम बुक कर सकते हैं। इसके अलावा मंदिर के पास संकरी गलियों में कई होटल उपलब्ध हैं, जिसमे आप अपने बजट के अनुसार कमरे ले सकते है। यहाँ से आप मंदिर तक पैदल जा सकते हैं।
Dharamshala in Somnath -सोमनाथ में धर्मशालाओं की जानकारी, कम किराये में अच्छी धर्मशाला
सोमनाथ मन्दिर का इतिहास
ऊपर के चित्र में पुराने सोमनाथ मंदिर के अवशेष दिखाए गये है।
ऋग्वेद के अनुसार सबसे पहले आदिकाल में चन्द्र देव ने सोमनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद मंदिर अति पुराना हो जाने के कारण सन 649 में गुजरात के मैत्रिक राजाओं ने दुबारा बनवाया। सन 725 में सिंध के मुस्लिम सूबेदार अल जुनैद ने आक्रमण करके मंदिर को तुडवा कर खज़ाना लूटा। सन 815 में राजा नागभट्ट ने तीसरी बार मंदिर बनवाया, उस समय मंदिर धनसंपदा के लिए बहुत प्रसिद्ध था। सन 1025 में 11 मई को 9. 46 पर महमूद गजनबी ने अपने 5000 सैनिको के साथ सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया। उसने मंदिर के अंदर पूजा व अन्य कार्य कर रहे 25000 लोगो को मौत के घाट उतार दिया और 18 करोड़ का खज़ाना लूट लिया। महमूद के मंदिर लूटने के बाद राजा भीमदेव ने मंदिर पुनः बनवाया। सन 1093 में सिद्धनाथ जयसिंह ने, सन 1168 में विजयेश्वर कुमार पाल एवं सौराष्ट्र के राजा खंगार ने सोमनाथ मंदिर को भव्य बनाने और सौंदर्यीकरण करने में योगदान दिया। सन 1297 में दिल्ली सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति नुसरत खां ने पवित्र शिवलिंग को खंडित कर मंदिर लूटा, खसोटा और ध्वस्त कर किया। सन 1375 में गुजरात के सुल्तान मुज़फ्फर शाह ने और 1413 में उसके पुत्र अहमद शाह ने सोमनाथ मंदिर को लूटा। 1451 में मंदिर महमूद बेगडा ने लूटा और ध्वस्त कर दिया। क्रूर बादशाह औरंगजेब ने 1965 और 1706 में मंदिर को तोडा और वहाँ पूजा कर रहे कई लोगो को मार डाला। सन 1783 में इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई ने मुख्य मंदिर से कुछ ही दूरी पर सोमनाथ महादेव का एक और मंदिर बनवाया। भारत के आजाद होने के बाद 1950 में सरदार वल्लभभाई पटेल ने निर्देशन में मंदिर का कैलाश महामेरु प्रसाद शैली में पुनर्निर्माण हुआ। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की प्राण प्रतिष्ठा दिनांक 11 मई सन 1951 को सुबह 9 .46 पर की गई, जिस समय सन 1025 में महमूद गजनबी ने मंदिर को धवस्त किया था। भारत के राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने 1 दिसंबर 1995 को इसे राष्ट्र को समर्पित किया।
प्राचीन सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर का वर्णन
मंदिर के चारो तरफ दूर दूर तक जय सोमनाथ, जय सोमनाथ का जयघोष गूंजता रहता था। समुद्र की बड़ी बड़ी लहरें जब मंदिर की सीढियों पर आकर टकराती थी तो इन लहरों से निकलने वाली जय शिव शंकर, जय शिव शंकर की ध्वनि और सोने के चमकते हुए घंटों से निकलने वाली ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय की ध्वनि से मंदिर का वातावरण भक्तिपूर्ण हो जाता था।
सोमनाथ मंदिर का यह विशाल सोने का घंटा दो सौ मन सोने से बना था। मंदिर के 56 खम्बों में हीरे, माणिक्य और मोती जैसे रत्नों जड़े हुए थे। रत्नदीपों की जगमगाहट से मंदिर का गर्भगृह प्रकाशमान रहता था और कन्नौजी इत्र से मंदिर की वायु हमेशा सुगन्धित रहती थी। मंदिर के भंडार गृह में टनों सोना, स्वर्ण आभूषण और अनगिनत धन सुरक्षित रहता था।
शिवलिंग के पूजन और अभिषेक के लिए पुष्प कश्मीर से और पूजन सामग्री हरिद्वार, प्रयाग, काशी से प्रतिदिन लाई जाती थी। प्रतिदिन की पूजा के लिए एक हज़ार ब्राह्मणों की नियुक्ति की गई थी। मन्दिर में होने वाले भक्तिपूर्ण नृत्य और गायन के लिए लगभग साढ़े तीन सौ नर्तकियां थीं। सोमनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर को दस हज़ार गावों का उत्पादन दान के रूप में मिलता था।
सोमनाथ की कथा
शिव पुराण के अनुसार प्राचीन काल में राजा दक्ष ने अश्विनी समेत अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से कर दिया था। सभी सत्ताईस कन्याओं को पत्नी के रूप में चंद्रमा और सभी कन्याएं चंद्रमा को पति के रूप में पाकर अति प्रसन्न थीं। लेकिन कुछ दिनों के बाद चंद्रमा का समस्त समय और प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के लिए ही रहता था। इस कारण से दुखी होकर अन्य कन्याएं ने अपनी यह व्यथा अपने पिता दक्ष को बताई। दक्ष प्रजापति ने चंद्रदेव बहुत समझाया किंतु बार बार समझाने पर भी चंद्रदेव के आचरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष ने क्रोधित होकर चंद्रदेव को ‘क्षयग्रस्त’ होने श्राप दिया। जिससे चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए और उनकी रौशनी कम होने के कारण पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का उनका सारा कार्य रूक गया। चंद्रदेव और अन्य देवगण श्राप से मुक्ति के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए। सारा वृतांत सुनकर ब्रह्मा जी ने उन्हें कहा की आपको पवित्र प्रभासक्षेत्र (सोमनाथ) में जाना है और शिवलिंग की स्थापना करके महा मृत्युंजय मन्त्र का जप करते हुए भगवान शिव की आराधना करनी है, भगवान शिव के प्रकट होने के बाद आप दक्ष के श्राप से मुक्त हो सकते हो। चन्द्रदेव ने पूरी निष्ठा के साथ घोर तप करते हुए दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जाप किया। इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। चंद्रदेव ने कहा हे भगवान शिव मुझे क्षयरोग से मुक्त कर दीजिये। तब भगवान शिव ने कहा कि जिसने शाप दिया है वो भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। फिर भगवान शिव ने चंद्रमा से कहा कि एक माह में जो दो पक्ष होते हैं, उसमें शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन तुम निखरते जाओगे, लेकिन कृष्णपक्ष में उसी क्रम से तुम क्षीण होते जाओगे। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा। चंद्रदेव एवं देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की, कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए यहाँ निवास करें। भगवान् शिव ने उनके आग्रह को स्वीकार किया और तभी से ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ यहाँ रहने लगे। भगवान शिव सोमनाथ के रूप में यहां स्थापित होने के कारण तीनों लोकों में श्री सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए। कुछ समय बाद देवताओं ने यहां सोमनाथ कुंड की स्थापना की। कहते हैं कि भगवान शिव और ब्रह्मा कुंड में साक्षात निवास करते है इसलिए इस सोमनाथ कुंड में स्नान करने से असाध्य से असाध्य रोग और विशेषकर क्षय रोग से मुक्ति मिल जाती है, साथ ही सारे पाप धुल जाते हैं।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग दर्शन
सोमनाथ मंदिर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम है। दर्शन करने में लगभग 1 से 2 घंटे का समय लग जाता है। लाइन में लगने के बाद व्यर्थ की बातें करके समय नष्ट न करें, आप सोमनाथ के पवित्र मंदिर में खड़े है, मन ही मन ॐ नम: शिवाय का जाप करते जाएँ। सुरक्षा चक्रों से गुजरने के बाद आपको मंदिर प्रवेश के ठीक पहले अतिसुन्दर एवं वृहद् दिग्विजय द्वार दिखता है। द्वार से प्रवेश करने पर मंदिर के शिखर पर उन्मुक्त लहराती विशाल ध्वजा को देखकर उसे प्रणाम कर लीजिये। कहते है कि मंदिर की ध्वजा के दर्शन से ही मंदिर दर्शन का पुण्य प्राप्त हो जाता है। आपको सामने विशाल एवं सुंदर सोमनाथ मंदिर दिखाई देता है। मंदिर में प्रवेश करते ही मंदिर की आतंरिक साज सज्जा, सुन्दर नक्काशी एवं उत्कृष्ट कारीगरी को देखकर आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे। थोडा आगे बढ़ने पर सोने से मढ़ी दीवारों के मध्य में शिवलिंग के दर्शन होंगे। आप बहुत सौभाग्यशाली है, भगवान शिव का चमत्कारी शिवलिंग आपके सामने है। सारी दुनिया को भूलकर अपने मन को एकाग्र करके ज्योतिर्लिंग को अपलक निहारते रहें। ज्योतिर्लिंग के माध्यम से होने वाली भगवान शिव से साक्षात्कार की अनुभूति को ह्रदय में उतार लीजिये। आप श्रद्धा की बेड़ियों से बंधे हुए धीरे धीरे मंदिर के बाहर आ जाइये। दूर दूर तक फैले अंतहीन समुद्र से आती लहरों की कर्णप्रिय ध्वनि, मंदिर की दीवारों से टकराती समुद्र की लहरों की आवाजें एक अद्भूत वातावरण का निर्माण करती है। आप मंदिर के प्रांगण में ही लगी बेन्चों पर बैठ कर समुद्र की लहरों को आते जाते देखते हुए इस अद्भूत नज़ारे का आनंद उठाइए। सोमनाथ मंदिर के परिसर में शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों की सुन्दर झांकी बनाकर उसकी सम्पूर्ण जानकारी भी दी गई है।
सोमनाथ मंदिर में दर्शन का समय : सुबह 6 बजे से शाम को 9 बजे।
सोमनाथ मंदिर आरती
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग में आरती शब्दों में नहीं गाई जाती, यह आरती शंख, नगाड़े, शहनाई एवं घंटियों की ध्वनि के साथ होती है, इसमें शब्द नहीं होते सिर्फ संगीत होता है। कर्णप्रिय आरती की ध्वनि, दीयों की रौशनी, वातावरण में फैली गुगल की खुशबू, भक्ति से सराबोर जनमानस और भगवान भोलेनाथ का दिव्य ज्योतिर्लिंग स्वर्गलोक का वातावरण उत्पन्न कर देता है।
आरती के समय : सुबह 6 बजे, दोपहर को 12 बजे और शाम को 7 बजे।
सोमनाथ मंदिर में होमात्मक अतिरुद्र, होमात्मक महारुद्र, होमात्मक लघुरुद्र, सवालक्ष सम्पुट एवं महामृत्युंजय जाप आदि का अनुष्ठान किया जाता है।
सोमनाथ मंदिर का लाइट एंड साउंड शो
सोमनाथ मंदिर में प्रतिदिन रात शाम को 8 बजे से 9 बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो का आयोजन किया जाता है। इस शो के टिकट की कीमत 25 रुपये प्रति व्यक्ति और आधा टिकट 15 /- रुपये है। इस शो में सदी के महानायक और गुजरात के ब्रांड एम्बेसडर अमिताभ बच्चन की मनमोहक आवाज में सोमनाथ मंदिर की पौराणिक कहानी, इतिहास और आस पास के अन्य महत्वपूर्ण स्थानों का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है।
पुराना सोमनाथ मंदिर
मुख्य मंदिर के सामने ही छोटा गुलाबी रंग का पुराना सोमनाथ मंदिर है, जिसे 1783 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर ने पुणे के पेशवा के साथ मिलकर बनवाया था। विदेशी आक्रमणकारियों से बचाने के लिए इस मंदिर में गर्भगृह भूमि के अन्दर बनाया गया है, जिसमे आपको पुराने सोमनाथ शिवलिंग के दर्शन होते है। यहां की जाने वाली आरती कई संगीत वाद्ययंत्रों के साथ होती है, आप इस मंदिर के दर्शन अवश्य कीजिये। लोग इसे ओल्ड सोमनाथ मंदिर और अहिल्याबाई मंदिर के नाम से जानते है।
सोमनाथ में घूमने की जगह
Somnath Sightseeing Bus – सोमनाथ मंदिर के पास से तीर्थ दर्शन बस सुबह 8 बजे और दोपहर 3 बजे चलती है। बस का टिकट 30 रूपये है। Somnath Darshan Bus Timing यह बस 3 घंटे में सोमनाथ में मुख्य दर्शनीय स्थलों में घुमती है। मंदिर के पास ही कई ऑटो वाले मिल जायेंगे जो आपको 400 रूपये में आस पास के कई मंदिरों का चार्ट दिखायेंगे। आपको उनकी बातों में नहीं आना है क्योकि हिरन नदी के किनारे गोलोक धाम तीर्थ मे 8 मंदिर बने हुए है तथा शारदामठ दर्शनीय स्थल में भी 8 मंदिर बने हुए है। आटो वाले इन सभी मन्दिरों को अलग अलग दिखाते है। आप इन स्थलों पर अलग से चले जाएँ या आटो वाले से इस बारे में बात करें।
त्रिवेणी संगम सोमनाथ
सोमनाथ में त्रिवेणी संगम पर तीन महत्वपूर्ण नदियों यानी हिरन, कपिला और सरस्वती का सागर में मिलने से पहले संगम होता है। भगवान कृष्ण ने सोमनाथ के इस त्रिवेणी संगम में स्नान करने बाद गोलोक धाम की यात्रा की थी। स्वयं को शुद्ध करने के लिए कई लोग यहाँ डुबकी लगते है। यहाँ स्नान करने के लिए कई घाट और कपड़े बदलने के लिए चेंजिंग रूम बनाए गए हैं। पितृदोष से पीड़ित लोग यहाँ श्राद्ध तर्पण और अन्य अनुष्ठान करने आते है। बच्चों को यहाँ नाव की सवारी करने और घाट पर कबूतरों को दाना खिलाने में बहुत आनंद मिलता है।
सोमनाथ गोलोक धाम तीर्थ / देहोत्सर्ग तीर्थ
त्रिवेणी संगम से लगभग 1.5 किमी की दूरी पर गोलोक धाम तीर्थ वह पवित्र स्थान है, जहाँ से भगवान श्री कृष्ण बैकुंठ धाम चले गये थे। इसे देहोत्सर्ग तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है। भागवत पुराण के अनुसार भालुका तीर्थ में भगवान कृष्ण के तलुए में व्याध के तीर से घायल होने के बाद भगवान कृष्ण देवशर्ग की ओर कुछ किलोमीटर तक चले, बीच में उन्होंने त्रिवेणी संगम में स्नान किया। फिर भगवान श्रीकृष्ण हिरण्या नदी के तट पर स्थित देवशर्ग स्थान से विद्युत बनकर आकाश में विलीन हो गए। यहाँ आपको श्री कृष्ण के पदचिह्न दिखाई देंगे, जिन्हें भगवान श्री कृष्ण नीजधाम प्राण लीला की दिव्य स्मृति के रूप में बनाया गया है। उसी समय श्री कृष्ण के बड़े भाई बलदेवजी ने भी अपना असली रूप (शेषनाग का) धारण किया और गुफा मार्ग से पाताल लोक को प्रस्थान कर गए। इस गुफा को ‘दाऊजी-नी गुफ़ा’ कहा जाता है।
यहाँ पर गीता मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर, श्री कृष्ण चरण पादुका, गोलोक घाट, काशी विश्वनाथ मंदिर, महा प्रभुजी बैठक, भीमनाथ मंदिर और बलदेव की गुफा बने हुए है। गीता मंदिर के स्तंभों पर गीताजी का 18 वा अध्याय अंकित किया गया है। गीता जयंती के पावन अवसर पर यहाँ गीतापूजन एवं गीता पाठ के कई कार्यक्रम होते है।
समय: सुबह 6 बजे – शाम 6 बजे
सोमनाथ दर्शनीय स्थल शारदामठ
शारदामठ दर्शनीय स्थल में श्री कामनाथ महादेव मंदिर, श्री आदि शंकराचार्य मंदिर, श्री आदि शंकराचार्य की गुफा, श्री शंकराचार्य की गादी, श्री नरसिंह महादेव, श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग, श्री सरस्वती माता और श्री यंत्र के दर्शन होते है।
सोमनाथ पांच पांडव गुफ़ा / हिंगलाज माताजी गुफ़ा
सोमनाथ मंदिर से 1.5 किमी और सोमनाथ रेलवे स्टेशन से 2 किमी की दूरी पर त्रिवेणी संगम घाट के पास पांच पांडव गुफ़ा बनी है। इसे हिंगलाज माता मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। इस पांच पांडव गुफ़ा को 1949 में स्वर्गीय बाबा नारायणदास ने खोजा था। पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों ने अपने वनवास के दौरान यहां माँ हिंगलाज की पूजा की थी। यहां भगवान शिव, सीता मां, राम-लक्ष्मण, हनुमान जी और देवी दुर्गा के मंदिर भी बने हुए हैं। गुफा का प्रवेश द्वार बहुत सकरा और नीचा है। बच्चों को चढ़ने में आसान लगेगा, वयस्कों को नीचे झुककर जाना होगा, वृद्ध और भारी शरीर के लोगों के लिए प्रवेश करना थोड़ा मुश्किल है।
समय: सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक
सूर्य मंदिर सोमनाथ
सूर्य मंदिर हिंगलाज माताजी की गुफ़ा के निकट स्थित है। इस मंदिर में सूर्य देव और छाया देवी को समर्पित हैं। अज्ञातवास के समय पांडव यहां रहकर सूर्य देव की पूजा किया करते थे। इस समय जो मंदिर स्थित है वह 14वीं शताब्दी के आसपास बनाया गया है। मंदिर में श्री विष्णु भगवान, माता लक्ष्मी, ब्रह्मा जी, माता सरस्वती, माता सीता और माँ पार्वती की मूर्तियाँ स्थापित है। इस मंदिर में एक सूर्य कुंड भी स्थित है।
भालका तीर्थ सोमनाथ
सोमनाथ मंदिर से लगभग 5 किमी. दूर वेरावल मार्ग पर भालका तीर्थ स्थित है। इसी स्थान पर पहले वन था, जिसमे विश्राम करते समय श्री कृष्ण को जरा नामक व्याध का तीर लगा था। त्रेता युग में भगवान श्री राम ने बालि को धोखे से तीर मारा था। उस समय प्रभु श्री ने कहा था मैं भी तुम्हें मौका दूंगा। जब द्वापर युग आया तो बालि ने बहेलिये के रुप में जन्म लिया। बहेलिए ने हिरण समझकर निशाना साधा जो भगवान श्री कृष्ण के तलुए में लगा। बहेलिए ने बहुत हाथ जोड़े, क्षमा याचना की क्योकि वह बाण चलाकर पछता रहा था। भगवान कृष्ण तो संसार को चलाते है, वे जानते थे कि उनका इस लोक से जाने समय आ गया है, इसलिए उन्होंने बहेलिए को उन्होंने माफ कर दिया और देहोत्सर्ग तीर्थ में जाकर बैकुंठ गमन किया। यहां भगवान श्री श्रीकृष्ण की लेटी हुई विशाल प्रतिमा है साथ ही बहेलिया पछतावा करते हुए क्षमा मांगने की मुद्रा में है। मंदिर परिसर में पीपल का वृक्ष है जो एक 5 हजार साल पुराना है और कभी नहीं सूखता। आपको बगल में प्रेम भिक्षु जी महाराज द्वारा स्थापित अखंड रामनाम कीर्तन मंदिर और ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का संग्रहालय भी मिलेगा।
सोमनाथ वाणगंगा
भालका तीर्थ से सोमनाथ लौटते समय समुद्र के किनारे वाणगंगा है। इस पवित्र स्थान पर समुद्र की लहरों के मध्य दो शिवलिंग स्वयं प्रकट हो गए हैं। लगभग 40 सालों से लोग इन शिवलिंगों का पूजन कर रहे हैं।
सोमनाथ बीच
विश्व प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर के साथ-साथ सोमनाथ का यह विशाल समुद्र तट आपकी यात्रा का एक महत्वपूर्ण भाग है। दिन भर दर्शनीय स्थलों को घूमने के बाद आप यहाँ अपनी थकान मिटा सकते है। इस सागर तट पर आपको बड़ी बड़ी लहरे और रेत के खंड दिखाई देते है। यहाँ का सूर्यास्त विशेष रूप से दर्शनीय है। आप अपने जीवन साथी के साथ यहाँ एक रोमांटिक शाम बिता सकते हैं। यहाँ की लहरें बहुत बड़ी और खतरनाक है, इसलिए समुद्र में आगे न जाएँ और नहाने का विचार मन से निकाल दें, यहाँ नहाना में बहुत जोखिम है। बच्चों का विशेष ध्यान रखें। यहाँ बच्चों के साथ ऊँट की सवारी और घोड़े की सवारी का आनंद ले सकते है। यहाँ पर चौपाटी में बहुत से फेरीवाले भी होते है, उनके चटपटे नाश्ते से आप अपनी पेटपूजा कर सकते है।
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